संपादक अनिल मिश्रा की कलम से✍️…….
छत्तीसगढ़ उजाला रायपुर …..
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अच्छी जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस गदगद हो गयी थी।कांग्रेस पार्टी में विधायक दल का नेता कौन बनेगा इसको लेकर कई दिन तक विवाद चलता रहा।कौन बनेगा मुख्यमंत्री इस बात को तय करने में ही केंद्रीय नेतृत्व को काफी समय लग गए थे।प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस के आते ही कई दावेदार मुख्यमंत्री बनने के लिए आगे आ गए। इसमें ताम्रध्वज साहू,भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में आगे आये।कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में सोनिया गांधी के सबसे करीब ताम्रध्वज साहू का नाम तय करने के बाद बाकी दावेदारों ने राहुल गांधी के सामने ही विरोध कर दिया था।पार्टी से इस्तीफे देने तक कि बात कह दी थी।आखिरकार ताम्रध्वज के नाम को हटाते हुए भूपेश बघेल का नाम तय हुआ,उस समय इस बात की चर्चा बहुत जोरो पर थी कि टी एस सिंहदेव और भूपेश बघेल ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री बनेंगे।क्योंकि इन दोनों नेताओं की मेहनत से ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जोरदार वापसी हुई है।अंततः केन्द्रीय नेतृत्व ने काफी मशक्कत के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का नाम तय कर ही लिया।
प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी दिखने लगी सामने…
इसके बाद प्रदेश की सत्ता में दो गुट का विवाद हर समय नजर आने लगा।सूत्रों के अनुसार टी एस सिंहदेव और भूपेश बघेल एक दूसरे के धुर विरोधी दिखने लगे।विभागीय कार्यो में भी इन दोनों नेताओं का झगड़ा साफ दिखने लगा।कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि ढाई वर्ष के बाद टी एस सिंहदेव मुख्यमंत्री न बन जाये इन्ही कारणों से इन दोनों नेताओं का झगड़ा हो रहा है।ढाई साल के बाद भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव का झगड़ा लोगो को साफ नजर आने लगा।इन दोनों नेताओं के समर्थकों को भी कई बार आमने सामने लोगो ने देखा भी,पर हर मामले में भूपेश बघेल ज्यादा ताकतवर नजर आने लगे।राहुल गांधी के पास अपना नंबर बनाने में भूपेश सफल भी रहे।
टी एस सिंहदेव सहज व सरल नेता के रूप में जाने जाते…..
टी एस सिंहदेव को शांत व सरल नेता के नाम से जाना जाता है।बोला जाता है कि टी एस सिंहदेव हमेशा शांत रहते है।एक सफल राजनीतिज्ञ के गुण ऐसे ही होते है।अपनी शांत व सरल छवि से आप जनता के बीच मे लोकप्रिय आसानी से हो सकते है।जनता ऐसे ही नेता को पसंद करती है।भूपेश बघेल वर्तमान में मुख्यमंत्री तो जरूर है पर प्रदेश की जनता के बीच मे टी एस सिंहदेव का ज्यादा सम्मान है।पूर्व की भाजपा सरकार में जो चेहरा डॉ रमन का था उस हिसाब से इस सरकार में टी एस सिंहदेव का कहा जा सकता है।शांत सौम्य व सहज नेता के रूप में सिंहदेव जाने जाते है।
संगठन भी अब तक फार्मूले को नकारता ही रहा….
कांग्रेस पार्टी का संगठन भले बार बार यह बात कहते आ रहा है कि ढाई ढाई साल वाला कोई भी फार्मूला नही है।छत्तीसगढ़ में मीडिया को पी एल पुनिया भी ढाई ढाई साल के फार्मूले को नकारते रहे है।पर इन दोनों नेताओं के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है।दिल्ली दरबार मे दो दिन से राहुल गांधी की इन दोनों नेताओं के साथ बैठक जारी है।कांग्रेस के केंद्रीय संगठन के नेता केसी वेणुगोपाल के साथ ही पी एल पुनिया भी इस बैठक में राहुल गांधी के साथ बैठे हुए थे।कल इस बैठक के बाद मीडिया में पी एल पुनिया ने कहा कि प्रदेश के कार्यो को लेकर यह बैठक की गई थी।अभी तक इस विवाद को लेकर साफ बयान कांग्रेस के बड़े नेताओं ने नही दिया।पर कुछ न कुछ तो जरूर पक रहा है।अब क्या पकेगा और किसको मिलेगा यह आने वाले समय मे ही पता चलेगा।कही छत्तीसगढ़ में भी मध्यप्रदेश की पुनरावृत्ति हो जाये यह भी सम्भव है।
ढाई ढाई साल के फार्मूले की चर्चा पर कब लगेगा विराम???
एक बात तो साफ हो चुकी है कि कही न कही ढाई ढाई साल के फार्मूले पर ही पूर्व में फैसला हुआ था।जिसको लेकर आज छत्तीसगढ़ कांग्रेस में बवंडर मचा हुआ है।अन्यथा केन्द्रीय नेतृत्व अचानक भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव को दिल्ली नही बुलाता।कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को अब इस मामले का पटाक्षेप जल्द करने की भी आवश्यकता है।इतने बहुमत में आने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस का झगड़ा निरंतर चला आ रहा है।ढाई ढाई साल के फार्मूले की बात को लेकर प्रदेश का विपक्षी दल हमेशा बयान जारी करता भी आ रहा है।क्या इस बार की बैठक से मुख्यमंत्री की कुर्सी का विवाद थमेगा या फिर कांग्रेस की नूराकुश्ती यूही ही चलती रहेगी।