Bye विशेष संवाददाता
रायपुर : ग्राम मुजगहन की चीटफंड की विवादित जमीन पर शहर के बिल्डरों का जमकर खेल चल रहा है. सूत्र बताते हैं कि इस जमीन के पार्टनरशिप में अष्टविनायक रियल्टीज के मालिक संतोष विक्की लोहाना भी शामिल हैं व वे यहाँ प्रोजेक्ट लांच कर रहें हैं. इसी बाबत अष्टविनायक रियल्टीज का वहाँ बड़ा सा होर्डिंग लगा है. जिसमें इस जमीन पर “न्यू प्रोजेक्ट कमिंग सून ” लिखा गया है. चीटफंड की इस बेशकीमती जमीन पर जिसमें राज्य के चीटफंड प्रभावितों का हक था बिल्डरों के हाथ में चला गया है. इस मामले को लेकर प्रशासन और मीडिया तक जाने वाले सोशल एक्टिविस्ट विक्रम सिंह चौहान ने बताया कि संतोष विक्की लोहाना राज्य के रसूखदार नेताओं और अधिकारियों के सम्पर्क में रहते हैं. उनके कांग्रेस नेताओं से तगड़ा लिंक है. चर्चा है कि उनके कई प्रोजेक्ट में रायपुर के पूर्व कांग्रेस महापौर, पूर्व कांग्रेस विधायक एवं मुख्यमंत्री के सुरक्षा में रहें एक एसपी का अच्छा खासा निवेश है. इसलिए इस जमीन पर इन नेताओं और अधिकारियों के पैसे निवेश होने से इंकार नहीं कर सकते. वे एक तरह से इन नेताओं के पैसे को खपा रहें हैं. बावजूद इसके आज तक ईडी व इन्कम टैक्स के दायरे से बचे हुए हैं. चौहान ने कहा कि वे इस मामले को तब तक उठाते रहेंगे जब तक इस जमीन की पूर्व की खरीदी, बिक्री निरस्त कर राज्य शासन इसकी खुली बोली, नीलामी नहीं कर लेती.
गौरतलब है कि रायपुर के ग्राम मुजगहन स्थित साईंप्रसाद चीटफंड कंपनी की करोड़ों की 21 एकड़ जमीन बिल्डरों द्वारा कौड़ियों के मोल में लेने की खबर है. सोशल एक्टिविस्ट विक्रम सिंह चौहान ने बताया कि यह जमीन साईं प्रसाद इंफ़्रा एंड कंस्टो प्रायवेट लिमिटेड द्वारा सीनियर मैनेजर प्रापर्टी डेवलपमेंट और अतुल चावड़ा के संयुक्त नाम पर था जिसे मुंबई के एक अदालत के फैसले का हवाला देते हुए एमपीआईडी के तहत बिलासपुर निवासी बैजनाथ मिश्रा ने छह करोड़ बयानबे लाख में खरीदा और इस रकम को इकोनॉमिक अफेन्स विंग में जमा किया.इस जमीन को उन्होंने खरीदी प्रक्रिया के पूर्व रायपुर के अविनाश डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को बेचना तय कर लिया और पॉवर ऑफ़ अटार्नी भी रायपुर निवासी सौरभ अग्रवाल को बना लिया कि यह जमीन सिर्फ अविनाश डेवलपर्स को ही बेचा जाये.ज्ञात हो कि सौरभ अग्रवाल अविनाश डेवलपर्स के ही डायरेक्टर हैं.अतिरिक्त तहसीलदार की अदालत से मिले दस्तावेजों में यह स्पष्ट नहीं है कि किस अखबार में बैजनाथ मिश्रा द्वारा दावा आपत्ति आमंत्रित किया गया एवं इस भूमि के बिक्री पूर्व जो खसरा आईडी में लिखा है ” इस जमीन के बिक्री पूर्व कलेक्टर बस्तर एवं पुलिस अधीक्षक बस्तर की पूर्वानुमति लिया जाये ” यह भी नहीं लिया गया.
चौहान ने बताया कि अतिरिक्त तहसीलदार के अदालत में अभिलेख दुरुस्त होते ही बैजनाथ मिश्रा ने इस जमीन को अविनाश डेवलपर्स को सात करोड़ दस लाख में बेच दिया.32 खसरे में शामिल यह 21 एकड़ भूमि लोगों से धोखाधड़ी और फ्राड से हासिल किए गए पैसा से चीटफंड कंपनी साईंप्रसाद ने खरीदी थी. छत्तीसगढ़ के कोरबा, बलौदाबाजार, बस्तर, रायपुर सहित कई जगह हजारों आवेदन लोगों ने इस कंपनी से पैसा वापस पाने की आस में शासन के समक्ष लगाया था. लोगों को उम्मीद थी कि इस कंपनी के संपत्तियों के बिक्री से उनके द्वारा जो जमापूंजी लगाई गईं थी उसका कुछ हिस्सा उन्हें वापस मिलेगा. रकम दोगुने होने के लालच में लोगों ने करोड़ों रूपये पुणे स्थित इस चीटफंड में लगाए थे. लोगों को उनका पैसा तो मिला नहीं बल्कि कई संपत्ति बिल्डरों ने गुपचुप रास्ते से खरीद लिया.
रायपुर निवासी सोशल एक्टिविस्ट विक्रम सिंह चौहान ने बताया कि इस जमीन को अगर सेबी या मुंबई की सक्षम अदालत के हवाले से खरीदी गईं है तो क्या इस जमीन के मूल्य का मूल्यांकन राज्य की किसी इकाई से कराया गया. अगर नहीं तो राज्य शासन ने हस्तक्षेप करते हुए इसके लिए नीलामी प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई. बैजनाथ मिश्रा ने क्या यह बेनामी खरीद किया है अविनाश डेवलपर्स के लिए? उन्होंने इन्हीं सब बिन्दुओ को लेकर 6 दिसम्बर को रायपुर कमिश्नर महादेव कावरे को शिकायत किया है. कमिश्नर कावरे ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जाँच की बात कही है.
चौहान ने बताया कि करोड़ों की कीमती जमीन सिर्फ 7 करोड़ के आसपास बिक जाना संदेह पैदा करता है. अविनाश डेवलपर्स द्वारा अब यह जमीन दूसरे बिल्डरों को टुकड़ो में करोड़ों में बेचा जा रहा है. एक -डेढ़ माह में ही तीन चार सौदे इस जमीन को लेकर हो चुका है.चौहान ने बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की जाएगी क्योंकि चीटफंड प्रभावितों का इस जमीन पर वास्तविक हक था, उन्हें इसकी बड़ी कीमत मिलनी चाहिए थी.वही कलेक्टर,एसडीएम और तहसीलदार की भूमिका की जाँच की बात भी उन्होंने कही है कि राज्य शासन के प्रतिनिधि के तौर पर चीटफंड प्रभावितों के रकम वापसी और जमीन की असल दर दिलवाने के लिए तमाम कानूनी प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाया गया.