छत्तीसगढ़ राज्य के अपर मुख्य सचिव श्री सुब्रत साहू आईपीएस अधिकारी के जन्मदिवस पर रमाकांत मिश्रा पत्रकार का विशेष आलेख।
बिलासपुर – एक आईएएस अफसर के अपने प्रशासनिक दायित्व से, जब सुब्रत वापस आम जीवन में लौटते हैं, तो अनायास ही सामाजिक विमर्श में उनका परंपरावादी मन सांस लेने लगता है। प्रशासनिक उत्तरदायित्व से उनका कार्यकाल यद्यपि बहुत सारे कुतूहल भरे प्रश्नों को एक साथ, एक ही समय में, और एक ही चरखे में, मानवीय धागों में पिरो कर, कातना चाहता हो, किंतु, वहीं दूसरी ओर उनके द्वारा सजग और कर्तव्यनिष्ठ रहते हुए भी, पूरी ईमानदारी, से सियासी हुकूमत से परे जाकर, आम जनता और जनता के हितों के लिए किए गए, अब तक के प्रेरणादायक कार्य आने वाली कई दशकों तक, समाज में फैले हुए तमस और अंधेरो को, अपनी पुरसकून रोशनी से आपलावित्त करते हुए वर्तमान परिपेक्ष तक अपनी अनवरत यात्रा करते प्रतीत होते हैं।।
सुब्रत जी के विषय में , बीते वर्षों में , उनसे जुड़े हुए लोगों ने, यह भी जाना है कि, छत्तीसगढ़ राज्य में कार्य करते हुए, उनके आम छत्तीसगढ़ियो के हितों के प्रति उदारीकृत रवैये के व्यापक प्रश्नों को कुरेदकर, यही पहलू सामने आता है कि, समकालीन समय में अगर पूरी तरह से ईमानदारी को अपने पेशे में किसी व्यक्ति ने जरा भी गवाया नहीं है, तो ऐसी पंक्ति में , सबसे पहला नाम आईएएस अफसर सुब्रत साहू जी का ही है । अपने सेवाकाल के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य के विशेष संदर्भ में उन्होंने विभिन्न प्रशासनिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत कलेक्टर, कमिश्नर, विभिन्न विभागों के सचिव, प्रमुख सचिव और अब मुख्यमंत्री के साथ ही गृह,जेल, आवास विभाग के अपर मुख्य सचिव के पद पर रहते हुए , ना सिर्फ प्रासंगिक बनाया है अपितु, समकालीन अर्थों में ऐसे पेशे का मान और सम्मान आम जनता की नजरों में बढ़ाने का भी कार्य किया है , जिसकी वजह से उनके द्वारा लिए गए स्टैंड्स , आज उन सभी मानवीय पहलू मे हर क्षण आत्मीय संवाद करते हुए प्रतीत होते हैं ।
सहकारिता विभाग के पंजीयक पद पर रहते हुए उन्होंने विभिन्न सहकारी संस्थाओं को और समितियों में व्याप्त तमाम विसंगतियों को दूर कर सहकारी समितियों के माध्यम से संचालित होने वाले तमाम लघु व कुटीर उद्योगों की इकाइयों को पुनर्जीवित करने का साहस पूर्ण कार्य किया है। सहकारिता विभाग में उनके द्वारा किए गए कार्यों की वजह से भ्रष्टाचार को सत प्रतिशत समाप्त करने में सफलता प्राप्त हुई है । वह इस पद पर सुशोभित रहते हुए उनके सहकार के आईने और वंचित स्नेह गरीब जनता के प्रति , सहायता की पतंग ने उनके व्यक्तित्व को एक “आईना साज” की तरह भी, प्रस्तुत किया है, एक ऐसा सचेत “आईना साज”, जो बदलते छत्तीसगढ़ को अपने पूर्वजों की परंपरा से जोड़कर और अधिक ज्यादा उदार , ज्यादा खुला हुआ , ज्यादा आत्मीय देखना चाहता हो।
यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि,
परंपरागत रूप से छत्तीसगढ़ के लोगों को सरल सीधा और ईमानदार समझा जाता है और आज इसीलिए पूरे भारत में विभिन्न क्षेत्रों और प्रांतों में कमाने खाने के लिए जाने वाले लाखों मजदूरों के प्रति, उसी इमानदारी के भाव ने, मजदूरों को हमेशा ईमानदार और मेहनती होने का पर्याय और सम्मान भी मिला हुआ है । इस बात को भली-भांति समझने के बाद श्री सुब्रत साहू के द्वारा, समय-समय पर कमोवेश उन सभी परियोजनाओं पर कार्य किया जाता रहा है जिससे राज्य में गरीबी अशिक्षा महंगाई और आम जनता की परेशानी को दूर किए जाने का लोक व्यापक प्रयास किया जा सके।
हम यह भी कह सकते हैं कि,श्री सुब्रत साहू उस परंपरा के अघोषित अलिखित और अनिर्वाचित योद्धा है, जहां जिंदगी एक सिलसिले से शुरू होती है, और चरागों से चिराग रोशन होता है और मशालों से मशाल। और इसी रोशनाई मे श्री सुब्रत को एक प्रतीक रूप में चुनते हुए, उनकी सामाजिक दृष्टि को, उनके कार्यों के हवाले से निश्चित तौर पर वही स्वायत्तता और स्वैच्छिक आत्मीयता का कलेवर प्राप्त होता है, जिस स्वायत्तता में , छत्तीसगढ़ राज्य से जुड़ी हुई तमाम परंपराएं और ३६ गढ़ो के आधार पर छत्तीसगढ़ का नाम छत्तीसगढ़ पड़ने का सच सार्थक अस्तित्व के साथ उभरकर आता है , एवं उसी पुराने राज्य की पूर्वजो की चली आ रही परंपरा मे, लोगों के सादगी भरे व्यवहार और परस्पर सहजता की, प्रासंगिक परंपरा को उन्होंने और अधिक ताकतवर बनाये जाने के कार्य के प्रति हम ना चाहते हुए भी सदैव, उनके कृतज्ञ रहेंगे ।
उनके जन्मदिवस पर उनकी कुछ ऐसी मानवीय अनुभूतियों को हम रेखांकित करना चाहेंगे जो दुर्भाग्य से प्रशासनिक अधिकारियों के पाले में बहुत कम देखने को आती है।
विवाद हो तो भी, तर्क पूर्ण प्रासंगिकता की दृष्टि से विमर्श के इस मुद्दे के प्रति, हम ऐसे व्यक्तित्व के विषय में हम सिर्फ यही कह सकते हैं कि, एक वृहद और महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए उन्होंने तमाम सांसारिक जीवन से एक अलग तरह के अलगाव में अपने प्रशासनिक उत्तरदायित्व को पूरा करने का कार्य जिस साफगोई और कर्मठता के साथ किया है, और जो वनवासियों और छत्तीसगढ़ के आम जनता के प्रति प्रेम, उदात्तता, समर्पण , त्याग, आदर और सहकार की भावना में वर्तमान समाज के सच को और अधिक आकार देने अनछुए पहलुओं ने, जनता जनार्दन के रिसते जख्मों पर मरहम लगाने का कार्य किया है।
सुब्रत के संबंध में कुछ ऐसी माननीय अनुभूतियां भी रेखांकित होती हैं जो अब सिर्फ किस्से कहानियों में ही मिलती है। राज्य के आम वृंद वंचित वर्ग के लोगों के लिए कुछ कर गुजरने के उनके जुनून ने उन्हें सांसारिक जीवन मे भी एक तरह का अलगाव दिया है । सुब्रत भी माननीय दृष्टिकोण के पक्ष के लिए कुछ कर पाने की उत्कट अभिलाषा से ऐसे ही अलगाव से भला अछूते कैसे रह सकते थे??
हालांकि इस समाज की सबसे बड़ी यही विवशता रही है कि, जो कुछ भी गलत, अनियमित विसंगतिपूर्ण और हिंसक है उसका प्रतिकार करने का माद्दा हर किसी में नहीं है। वही सुब्रत जी, जैसे लोग ही है जो बहुत नाजुक ढंग से ऐसे फलसफे को अपने मन की दिपदिपाती उदारता के साथ करने का साहस दिखला पाते हैं । उन के जन्म दिवस के अवसर पर उनके जैसे तमाम कर्मयोगियो की पृष्ठभूमि में अनेक पारमार्थिक परतें और असंख्य परिस्थितियों मे ऐसी विशेषताएं कई शताब्दियों की यात्रा करती हैं । यह लिखना अधिक समीचीन है की सुब्रत सहज ही अपने समय को छोड़कर इस नई शताब्दी में चले आए हैं और तटस्थ भाव से प्रशासन और जनता के बीच एक ऐसा नाजुक संतुलन बनाते आए हैं जो कि जनता और प्रशासन की दुखती कथा , भाषा और उससे उपजने वाले प्रश्न और आधुनिक समय पर की जाने वाली, टिप्पणियां और आम जनता को मिलने वाले लोकतांत्रिक हितों की पैरवी यहां कुछ नये बेचैनी भरे रंग अख्तियार करती है।
बरहहाल उनके जिंदगी के तजुर्बे, हालात, इतिहास, फलसफे, भगवान और इंसान के बीच के रिश्तो से ताजादम है ।
उनके विषय में किसी शायर की लिखी हुई है पंक्तियां बहुत सटीक बैठती है “”
तुम भी इश्क इख्तियार करना ।। सच्चाई की जिंदगी जीना ।। जुर्म से नफरत करना ,, और आदमी से मोहब्बत । तमाम उम्र नफरतों से आजाद रहना ।।
“”
यही कुंजी है, जीवन को जीने की, जो मानवीय मूल्यों में पिरोए गए सृजन और अभिव्यक्ति की मिली जुली आजादी की पैरवी में एक बड़े कद के प्रशासनिक अधिकारी के रूप में छत्तीसगढ़ मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर रहते हुए उनके बेहतर कार्यो के एतदर्थ , उन्हें राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कृत होने का दमकता आभामंडल भी प्रदान करती है।
दरअसल बहुतेरे ऐसे लोग मिलेंगे जो जीवन को जीने में अपने सह अस्तित्व को ,दूसरों के जीवन के फलसफे की रागदारी से संजोने की कोशिश करते हैं, और ऐसे विरले वृंद व्यक्तित्व के कार्यों की, उपस्थिति मे, उनके अपने चरित्रों के बहाने कुछ बेहतर इशारे कर देने भर के लिए रची गई मानवीय रिश्तो की कड़ियों के हलाहल निकल जाने को भी का अपारिश्रमिक तौर पर भी मौजूद हैं, बरहहाल यह अपनी उपस्थिति में भी खास किस्म का संगीत रचती हैं।
कायनात भी ऐसे लोगों के कार्यों को सिरे से खारिज कर देता चला आया है, लेकिन वह समय ही है, जो उसे एक कठिन विमर्श, वागद्मिता और जटिल कथानक को जिस खूबसूरती से कांटो भरी राह से गुजार कर ऐतिहासिक द्वंद के रास्ते पर ले आता है वह उठान अप्रतिम है । कमोबेश एक ही व्यक्ति में सामाजिकता का सुगढ गठन समाज की समवेत आवाजों का अस्तित्व, प्रशासनिक बंदिशो को तोड़ती लयबद्ध नात, और सियासत की तफरीह करती अनुगूंजे, विरासत की सियासत और आधुनिकता के टकराहट, एक बड़े कालखंड में अलग-अलग किरदारों में बैठे हुए अलग-अलग किरदारों के महत्वाकांक्षी धरातलो के बीच में न जाने सुब्रत कैसे प्रासंगिक हो उठते हैं और ऐसी फंतासी रचते हैं, कि ना चाहते हुए भी समय और प्रश्नों के साथ, न्याय और व्यावहारिकता का रिश्ता रचाती, उनके बेहतरीन समन्वय की डोर, बहुधा गुथी मिलती है,….. हां यकीनन, जिसमें एक भव्य राष्ट्र निर्माण की पतंग अनंत तक उड़ाई जा सकती है ।।