अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपने को दे,वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ द्वारा इसी परिपाटी पर काम किया जा रहा है माना कि शीर्ष नेतृत्व की फटकार के बाद यह दिखाई दे रहा है की सभी मोर्चों पर गठन हो रहा है परंतु क्या यह गठन वाकई संगठनात्मक कसावट के लिए उपयुक्त है या केवल एक औपचारिकता मात्र है?छत्तीसगढ़ भाजपा आज प्रदेश में विपक्ष के स्थान पर काबिज है।पर क्या आज छत्तीसगढ़ भाजपा एक सही विपक्ष का रोल अदा कर पा रही है।इस बात को लेकर अकसर पार्टी कार्यकर्ताओं में चर्चा होते रहती है।पार्टी के अलावा आम जनता के बीच मे भी यह बात सुनने को आती है।एक मजबूत विपक्ष के रूप में छत्तीसगढ़ भाजपा पूरे तरह से कमजोर प्रतीत होती है।प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के आने के बाद ही भाजपा नेताओं का प्रदेश में काबिज कांग्रेस सरकार के खिलाफ बयान देना शुरू हुआ है।प्रदेश प्रभारी के ख़ौफ़ में कम से कम प्रदेश के नेताओ ने बोलना तो शुरू किया।पंद्रह वर्ष के सत्ता सुख भोगने के बाद विपक्ष का रोल अदा कर पाने में भाजपा असहज प्रतीत हो रही थी।पर क्या आज भी मजबूत विपक्ष के रूप में आ पाई है यह कहना बडा ही कठिन होगा।
क्या प्रदेश में भाजपा की सोच और तौर तरीके पूरी तरह से कांग्रेसीकरण हो गए है।क्या भाजपा में भी कांग्रेसियो की तरह पार्टी संचालन करने की प्रवृत्ति आ गयी है।क्या कार्यकर्ता अब बिना पद के पार्टी के लिए काम करना नही चाहते है या फिर सही लोगो के चयन कर पाने में प्रदेश का पार्टी नेतृत्व अब पूरी तरह से असक्षम हो चुके है।प्रदेश के नेता अपने आसपास रहने वाले अपने कट्टर समर्थकों को ही पद देकर उपकृत करने में लगे हुए है।
जिस प्रकार से कांग्रेस में अपने अपने लोगों को बिना किसी अनुभव वरिष्ठता आदि के बिना भी दायित्व प्राप्त होता हैं , पर वह उपयोगी नहीं होता ,ठीक उसी तर्ज पर आज भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ में सभी मोर्चा प्रकोष्ठों में गठन के लिए तत्पर और कटिबद्ध है।जिस प्रकार से मोर्चा और प्रकोष्ठों में पदों का सृजन करके अपने कुछ लोगों को संतुष्टि प्रदान कर खानापूर्ति की जा रही है; साथ ही प्रदेश नेतृत्व भी शीर्ष नेतृत्व को सभी मोर्चों के गठन दिखाकर अपने रिपोर्ट कार्ड को अच्छा दिखाना चाहता है । यथार्थ में पार्टी के धरातल के विस्तार में यह प्रकोष्ठ मोर्चा आदि सभी एक सकारात्मक योगदान दे सकते हैं परंतु विडंबना है की उन सभी का गठन सिर्फ और सिर्फ चाटुकारिता एवं बड़े नेताओं अथवा सन्निकटता वाले कार्यकर्ताओं को आज भी प्राप्त हो रहा है।
जबकि होना यह चाहिए कि समाज में जो भी व्यक्ति पार्टी विचारधारा से सहमत हों और उस संबंधित कार्य क्षेत्र से जुड़े हुए हैं ऐसे लोगों को उनके वर्ग,उनकी योग्यता, उनके कार्यक्षेत्र को ध्यान में रखते हुए मोर्चा और प्रकोष्ठों का गठन किया जाना चाहिए।यदि इसी प्रकार जिला और के पदों को रेवडी की तरह बांटा गया तो वह दिन दूर नहीं जब कोई नाली प्रभारी,गमला संयोजक, चाय पानी प्रभारी,फ्लेक्स प्रचार प्रभारी,वाल पेंट प्रभारी भी जैसे पदों को प्राप्त करेंगे।जैसे एनजीओ प्रकोष्ठ में एनजीओ का कार्य करने वाले लोगो को जोड़ना था,आरटीआई प्रकोष्ठ में आरटीआई से जुड़े लोगों को जोड़ना था।वैसे ही सोशल मीडिया में सक्रिय रहने वाले अच्छे लोगो को पार्टी के साथ जोड़ने था।पर इनकी जगह नेताओ के पिछलग्गू लोगो को ही इन पदों पर बैठालना समझ से परे है।क्या अपने आसपास के ही लोगो को इन प्रकोष्ठ में जोड़ना था?
केंद्रीय नेतृत्व एवं छत्तीसगढ़ प्रभारी डी पुरंदेश्वरी को तो यह चाहिए की पार्टी में योग्यता अनुभव कार्यक्षेत्र और सामाजिक छवि को ध्यान में रखते हुए दायित्व आवंटन किए जाने चाहिए। जिससे आगामी चुनावों में इनका प्रत्यक्ष जनता के बीच से लाभ मिल सके।प्रदेश में भाजपा की स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नही है।आज भी केवल कुछ लोगो तक ही भाजपा का संगठन संचालित हो रहा है।आज भी पार्टी के अच्छे कार्यकर्ता गुमनामी में जी रहे है।विधानसभा चुनाव हारने वाले आज भी जिले में संगठन के पदों पर अपनी जीहुजूरी करने वालो को रेवड़ी की तरह पद रूपी प्रसाद बाटने में लगे हुए है।आज भी वो ही लोग सबकुछ तय करने में लगे हुए है।क्या ऐसे में भाजपा दोबारा सत्ता में काबिज हो पाएगी?ऐसे बहुत से सवाल है जिनके बारे में पार्टी नेतृत्व को मनन करने की आवश्यकता है।