क्यो रहते हो आप तन्हा बैठे , हजारो के साथ |
काश कभी यू ही हंस बोल लेते, यारो के साथ |
दिल खुबसुरत किताब हैं,गर खुद खोल दिये होते,
तो कोई और ना खोलता इन्हें, औजारो के साथ ||
क्यो मौन मुख जिवन को, आप जिवन कहते हो |
क्यो अपने दुख दर्द को, अकेले ही यहा सहते हो |
कभी बोल कर देखे होते, तो हल जरूर निकलता,
जैसे ठूठ भी निखरता हैं, बाग के बहारो के साथ |
दिल खुबसुरत किताब हैं,गर खुद खोल दिये होते,
तो कोई और ना खोलता इन्हें, औजारो के साथ ||
मानव जिवन अनमोल हैं, अनमोल हैं यह समाज |
आप के कहे हुये कल से ही,तो आप का हैं आज |
हर छोटी समस्या का, आप का ऐसे होता निदान,
जैसे कि चॉद चमकता हैं, नभ में सितारो के साथ |
दिल खुबसुरत किताब हैं,गर खुद खोल दिये होते,
तो कोई और ना खोलता इन्हें, औजारो के साथ ||
कभी खुद की कहते, कभी हमारी भी कुछ सुनते |
यू चुपके – चुपके ना घुटते, ना ताना -बाना बुनते |
ना होता कोई गिला – शिकवा, एक दूसरे के मध्य,
मन प्रफूल हो गगन चुमता, तन गुब्बारों के साथ |
दिल खुबसुरत किताब हैं,गर खुद खोल दिये होते,
तो कोई और ना खोलता इन्हें, औजारो के साथ ||
यू तो कई दु:ख हैं, जो यहा सिर्फ अश्क ही देते हैं |
पर मुझ जैसा यार भी, बोलो और कहा मिलते हैं |
आओ कह दो, जो आप कहना चाहते हो मुझ से,
आओ कुछ पल संग बैठो, जरा नजारो के साथ |
दिल खुबसुरत किताब हैं,गर खुद खोल दिये होते,
तो कोई और ना खोलता इन्हें, औजारो के साथ ||
वक्त के साथ – साथ, आप हर करम पा जाओगे |
मन्दिर के चौखट पर जा कर, धरम पा जाओगे |
पर दिल को जो जीते, वो “विजय” कहा पर हैं,
कुछ वक्त और बिताओ अपने प्यारो के साथ |
दिल खुबसुरत किताब हैं,गर खुद खोल दिये होते,
तो कोई और ना खोलता इन्हें, औजारो के साथ ||
विजय सिंह “रवानी”
शिक्षक
सरस्वती शिशु मंदिर डोमन हिल
जिला- कोरिया (छत्तीसगढ़)