होठो पे शब्दो को तुने सजाया
उंगली पकड़कर मुझे चलना सिखाया
जिन्दगी देकर मुझे जीने के काबिल बनाया
सही गलत का सलीका भी माँ तुने बताया ।
कैसे कहु की क्या क्या दिए है
शब्दो की परिधि से माँ तु परे है
तेरी चाहतो का मोल मै क्या दू?
अनमोल है तु माँ बोल मै क्या दू?
अंधेरी रातो का उजाला माँ तु है
गिरते हुए का सहारा माँ तु है
देती है सब पर कुछ तु ना लेती
तु ऊपर वाले से कम तो न लगती ।
दूनिया का सुख चाहे जितना मिले माँ
तेरे आगे पर सब फिका लगे माँ
मिलो है दूरी तुझसे मेरी माँ
पर झाकु जो अन्दर तु मुझमे मिले माँ।
यू तो रिश्तो से भरा ये जीवन माँ मेरा
पर तु जैसे लाखो तारो मे चाँद हो मेरा
तेरा होना माँ मुझको रौशन है करता
तेरे आँचल का सुख मुझको जन्नत सा लगता ।
तु हँसती रहे तो मै सजती रहु माँ
तेरे बगिया मे आकर फिर से खिलु माँ
ख्वाहिश है मेरी मै बच्ची हो जाऊ
तेरे आँचल मे खेलु और सच्ची हो जाऊ।
होठो पे शब्दो को तुने सजाया
उंगली पकड़कर मुझे चलना सिखाया
जिन्दगी देकर मुझे जीने के काबिल बनाया
सही गलत का सलीका भी माँतुने बताया ।
संध्या झा