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पत्रकारिता विवि में फर्जी नियुक्ति, हाईकोर्ट में याचिका दायर

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छत्तीसगढ़ उजाला

बिलासपुर। रायपुर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में फर्जी नियुक्ति को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इसमें लोक आयोग की जांच व अनुशंसा का हवाला देते हुए अयोग्य पद पर बैठे कर्मचारियों को हटाने की मांग की गई है। रायपुर के आरटीआइ कार्यकर्ता अविनाश खांडेकर ने अधिवक्ता योगेश्वर शर्मा के जरिए याचिका दायर की है। इसमें बताया गया है कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में वर्ष 2008-08 व 2011 में करीब आधा दर्जन कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति की गई है। याचिकाकर्ता ने स्टेनोग्राफर, रीडर सहित अन्य पदों पर हुई नियुक्तियों के संबंध में सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी हासिल की। इसी आधार पर उन्होंने इस मामले की शिकायत लोक आयोग से की।

आयोग ने इस मामले की जांच की, जिसमें याचिकाकर्ता के आरोपों को सही पाया गया। आयोग ने जांच रिपोर्ट के आधार पर नियुक्तियों को गलत बताया है। आयोग के निर्देश के बाद भी विश्वविद्यालय प्रबंधन ने मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। इसके चलते हाई कोर्ट में याचिका दायर करना पड़ा है। इसमें बताया गया है कि मध्य प्रदेश के निवासी व भोपाल में शिक्षा हासिल करने वाले कई ऐसे कर्मचारी हैं, जिन्होंने छत्तीसगढ़ के निवासी होने का फर्जी प्रमाण पत्र हासिल किया है। इसी आधार पर उन्हें विश्वविद्यालय में नियुक्ति दे दी गई है।

इसी तरह फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्र के आधार पर भी कुछ लोगों को नौकरी देने का आरोप है। याचिका में लोक आयोग के साथ ही सूचना के अधिकार कानून के तहत हासिल दस्तावेजों को प्रस्तुत किया गया है, जिसके आधार पर नियम विस्र्द्ध तरीके से विश्वविद्यालय में नौकरी करने वालों को पद से हटाने की मांग की गई है। इस याचिका की अगले सप्ताह सुनवाई होने की बात कही जा रही है।

हाई कोर्ट में दायर की है क्यू वारंटो याचिका

अधिवक्ता योगेश्वर शर्मा ने बताया कि जब न्यायालय को लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गई है जिसका वह हकदार नहीं है तब न्यायालय में क्यू वारंटो (अधिकार पृच्छा) याचिका दायर की जाती है। इसके तहत न्यायालय को ऐसे व्यक्ति को उस पद पर कार्य करने से रोकने का अधिकार है।

संविधान द्वारा निर्मित कार्यालयों के खिलाफ कोर्ट इसे जारी कर सकता है। महाधिवक्ता, विधानसभा अध्यक्ष, नगर निगम अधिनियम के तहत वाले अधिकारी, एक स्थानीय सरकारी बोर्ड के सदस्य, विश्वविद्यालय के अधिकारी और शिक्षक को हटाने के लिए इस तरह की याचिका लाई जा सकती है।