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विपश्यना मन को एकाग्र करने की साधना है : प्रो. अंगराज चौधरी

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वर्धा, दि. 23 जून 2021 : विपश्यना विशोधन संस्थान, इगतपुरी के पालि भाषा के अनुवादक व सम्पादक विद्वान प्रो. अंगराज चौधरी ने कहा है कि बौद्ध योग में मन को एकाग्र कर उसे सास की डोर से बांधना ही विपश्यना है. बौद्ध दर्शन में निहित विपश्यना से शील का पालन करते हुए सतत जागरूक और सतर्क रहकर तन के विकारों को दूर किया जा सकता है. प्रो. चौधरी बुधवार (23 जून) को महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय वर्धा स्थित संस्कृति विद्यापीठ के डॉ. भदंत आनंद कौसल्‍यायन बौद्ध अध्‍ययन केंद्र एवं डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सिदो कान्‍हू मुर्मु दलित एवं जनजाति अध्‍ययन केंद्र की ओर से ‘विपश्‍यना (बौद्ध योग)’ विषय पर तरंगाधारित व्‍याख्‍यान में बतौर मुख्‍य वक्‍ता बोल रहे थे. योग सप्‍ताह के उपलक्ष्‍य में यह व्याख्यान आयोजित किया गया था. उन्होंने विपश्यना का आविष्कार, उसका अर्थ और मनुष्य के जीवन में उसकी महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहा कि गौतम बुद्ध ने सभी सुख सुविधाओं का त्याग कर चित्त को एकाग्र करने के लिए विपश्यना का आविष्कार किया. विपश्यना यानि विशेष रूप से देखना. इस साधना में क्रोध को देख और रोक भी सकते हैं. विपश्यना के आनापान एवं सति दो भाग हैं. चित्त चंचल है, उसे रोकना मुश्किल है परंतु उसे सास की डोर से बांध सकते हैं. उन्होंने कहा कि गौतम बुद्ध ने अचेतन चित्त को जानने के लिए विपश्यना की साधना की और राग एवं द्वेष को दूर करने का रास्ता बताया. प्रो. चौधरी ने विपश्यना साधना के स्वयं के अनुभवों को बताते हुए इसे जीवन में एक परिवर्तनकारी योग की संज्ञा दी.
अध्‍यक्षीय उदबोधन में प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट ने प्रो. चौधरी का सारगर्भित और महत्‍वपूर्ण व्‍याख्‍यान के लिए धन्‍यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने यम-नियम का आचरण करने का आह्वान किया. कार्यक्रम का स्‍वागत वक्‍तव्‍य संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी ने किया। प्रास्‍ताविक सहायक प्रोफेसर डाॅ. राकेश फकलियाल ने किया. संस्‍कृत विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने मंगलाचरण प्रस्‍तुत किया। संचालन बौद्ध अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने किया तथा बौद्ध अध्ययन केंद्र के प्रभारी सहायक प्रोफेसर डॉ. कृष्ण चंद्र पाण्डेय ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम में अध्‍यापक, शोधार्थी तथा विद्यार्थी बड़ी संख्या में सहभागी हुए. इस अवसर पर साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो.अवधेश कुमार, प्रो. एल करुण्यकरा, प्रो. प्रीति सागर, डॉ.सुनील कुमार सुमन, डॉ.मनोज कुमार राय, डॉ.अशोकनाथ त्रिपाठी, विपश्यना साधक डॉ.बीरपाल सिंह यादव, डॉ सुप्रिया पाठक, डॉ किरण कुंभरे आदि उपस्थित हुए।
योग सप्‍ताह के अंतर्गत 24 जून को ‘कबीर का सुरत योग (सहजयोग) विषय पर, 25 जून को गांधी एवं शांति अध्‍ययन विभाग की ओर से ‘गांधी जीवन में यौगिक चेतना’ विषय पर, 26 जून को प्रदर्शनकारी कला विभाग एवं मराठी विभाग की ओर से ‘नाथपंथ एवं हठयोग’ विषय पर तथा 27 जून को दर्शन शास्‍त्र एवं संस्‍कृति विभाग की ओर से ‘समग्रयोग’ विषय पर व्‍याख्‍यान आयोजित किए गए हैं ।