स्वाधीनता के 75 वर्ष के अवसर पर ‘भारतीय यथार्थ का सिंहावलोकन पर राष्ट्रीय वेबिनार
औपनिवेशिकता का प्रभाव आज भी हमारे मानस में है : पद्मश्री रामबहादुर राय
वर्धा, 13 मार्च 2021
: प्रसिद्ध पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष पद्मश्री रामबहादुर राय ने कहा कि स्वाधीनता के बाद आज भी औपनिवेशिकता का प्रभाव हमारे मानस में है। औपनिवेशिकता की जो छाया शासन, प्रशासन, नेतृत्व, राजनीतिक लोगों और साहित्यकारों पर है उसे दूर करने की आवश्यकता है। पद्मश्री राय महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘भारतीय स्वाधीनता के यथार्थ का सिंहावलोकन’ विषय पर स्वाधीनता के 75 वर्ष के अवसर पर शुक्रवार, 12 मार्च 2021 को आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने की। वेबिनार में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अच्युतानंद मिश्र और अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय ने संबोधित किया।
पद्मश्री राय ने 12 मार्च के इतिहास का स्मरण कराते हुए कहा कि गांधी जी द्वारा 91 वर्ष पूर्व 12 मार्च के दिन शुरू किया गया दांडी मार्च आंदोलन इतिहास में मील का पत्थर है। नमक सत्याग्रह से पूर्ण स्वराज की शुरूआत हुई और स्वाधीनता आंदोलन प्रारंभ हुआ। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता के यथार्थ को समझने के लिए नमक सत्याग्रह के अनूठेपन को समझना आवश्यक है। रामबहादुर राय का कहना था कि अगर गांधी जी कुछ दिन और जीवित रहते तो कराची जाकर भारत-पाक को एक करते, औपनिवेशिक छाया को दूर करते और ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने का रास्ता निकालते।
वक्ता के रूप में विचार रखते हुए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता के 75 वर्षों में सांस्कृतिक और शैक्षणिक स्तर पर क्या परिणाम हुए इसे देखा जाना चाहिए। भाषा सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा और राष्ट्रीयता में हो रहे परिवर्तनों का आकलन भी हमें करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को परंपरा और संस्कृति के साथ जोड़कर उसे सही रास्ते से जोड़ना चाहिए।
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय ने कहा कि आने वाली पीढ़ी को ठीक से आज़ादी के संघर्ष और हुतात्माओं के चिंतन से अवगत कराना ज़रूरी है। उन्होंने स्वाधीनता प्राप्ति के बाद हुए परिवर्तनों को अधोरेखित करते हुए कहा कि हमें सामरिक, आर्थिक और व्यावसायिक रूप से अधिक सशक्त बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि देश भर के क्रांतिकारियों के स्थलों को चिन्हित कर उसे नई पीढ़ी के लिए इतिहास के पन्नों के साथ जोडा जाना चाहिए। डॉ पाण्डेय ने भारत एक समृद्ध, समरस राष्ट्र बनकर खड़ा हो इसके लिए जनजागरण की आवश्यकता व्यक्त की।
संगोष्ठी में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि देश की जनता ने आज़ादी का आंदोलन लड़ा है। उन्होंने कहा कि 1857 का आंदोलन और आज़ादी का आंदोलन दीन और धर्म के लिए रहा है। दोनों आंदोलनों की कथा एक जैसी है। प्रो. शुक्ल ने कहा कि भारत के जन का इतिहास भारत की आज़ादी का इतिहास नहीं बन सका। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता के 75 वर्ष के अवसर पर आयोजन का निर्णय भारत सरकार ने विचार पूर्वक लिया है। यह स्व के जागरण का पर्व है और आत्मनिर्भरता का यत्न है। कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि स्वराज को थोपा नहीं जा सकता है। हमें स्वराज बोध को जगाना है। भारत बोध का मूल्यांकन करने का यह क्रम बना रहेगा। उन्होंने आश्वस्त किया कि विश्वविद्यालय गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा।
कार्यक्रम का संयोजन मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जयंत उपाध्याय ने किया तथा कुलसचिव क़ादर नवाज़ ख़ान ने आभार ज्ञापित किया।