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रेलवे के शासकीय मकानों पर विभाग में कार्य करने वाले ठेकेदार ने किया कब्जा,ठेकदार पर रेलवे प्रशासन की मेहरबानी समझ से परे……???

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बिलासपुर रेलवे देश के मानचित्र में एक बडे नाम से जाना जाता है।दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे हर वर्ष कमाई करने में आगे की पायदान पर रहता है।बिलासपुर रेलवे का क्षेत्रफल एक बड़े भूभाग में फैला हुआ है।बिलासपुर रेलवे ने जोन मुख्यालय , डिवीजनल कार्यालय के साथ ही अफसरो व कर्मचारियों का निवास भी बड़े भूभाग में बनाया हुआ है।बिलासपुर रेलवे अपने विभागीय लोगो के लिए बड़ी कॉलोनियों बनाकर रखा हुआ है।पुराने क्वार्टर्स को तोड़कर नए रूप में भी बसाहट की अच्छी व्यवस्था रेल प्रशासन के द्वारा की जा रही है।इन कार्यो में रेलवे करोड़ो अरबो रुपये खर्च करता आ रहा है।इसके साथ ही अपने कर्मचारियो को क्वार्टर्स आबंटन की रेलवे की अपनी नियमावली भी बनी हुई है।इन नियमो के हिसाब से आबंटन कमेटी इन क्वार्टर्स का आबंटन अपने लोगो को करती है।पर आज भी बहुत से ऐसे क्वार्टर है जिनको कुछ लोगो ने अवैधानिक रूप से कब्जा किया हुआ है।एक तरफ बड़े पैमाने पर रेलवे अपने विभाग के लोगो के लिए मकान बनाता है,वही दूसरी ओर कुछ लोग विभागीय लोगो के साथ सांठगांठ करके रेलवे के मकानों पर वर्षो से कब्जा किये हुए है।इन क्वार्टर्स में कब्जा करके कुछ लोग अपनी मनमानी करते आ रहे है।रेलवे प्रशासन को यह सब मामले क्यो नजर नही आते है यह अपने आप मे बड़ा सवाल है।

रेलवे अफसरों की ठेकेदार व यूनियन नेताओ पर विशेष कृपा…

सूत्रों के अनुसार रेलवे के एक ठेकेदार के ऊपर रेलवे के बड़े अफसरो की कृपादृष्टि बनी हुई है।इस कारण से ठेकेदार रेलवे के क्वार्टर्स पर काफी समय से अवैध तरीके से कब्जा किया हुआ है।रेलवे के ही कुछ कर्मचारियों ने नाम नही छापने की शर्त पर हमको यह भी बताया की इन क्वार्टर्स में ठेकेदार अक्सर कुछ अफसरो के लिए पार्टी भी करता रहता है।इन क्वार्टर्स की अगर सही तरीके से जांच करवाई जाए तो बहुत बड़े मामले उजागर हो सकते है।कुछ क्वार्टर्स को यूनियन के नेता भी कब्जा किये हुए है।कर्मचारियों को विभाग से स्वयं के लिए क्वार्टर अलॉट करवाना बड़ा ही कठिन काम सा लगता है।वही दूसरी ओर रेलवे के ठेकेदार कई कॉलोनियों में तीन से चार क्वार्टर्स को अपने कब्जे में रखे हुए है।कुछ क्वार्टर्स को तो बकाया किराए पर भी दिया गया है।सरकारी मकान को किराए में चलाकर कमाई का जरिया बनाये हुए है।जोन मुख्यालय में अगर यह सब वर्षो से चला आ रहा है तो रेलवे के दूर दराज क्षेत्रों में क्या हो रहा होगा,इसको बहुत आसानी से समझा जा सकता है।

सरकारी मकानों को कब्जा करके रेलवे को लगाया जा रहा है फटका

रेलवे के क्वार्टर नम्बर 622/2 मे कुछ लोगो को भी रखा गया है। न्यू लोको कॉलोनी,एन ई कॉलोनी,आर टी एस कॉलोनी मे कंट्रक्शन कॉलोनी सहित कई कॉलोनी में अवैध कब्जा करके लोग सरकारी संपदा का दुरुपयोग खुले आम करते आ रहे है। रेलवे मे ऐसी बहुत सी कॉलोनी है जिसको रेल्वे देकेदारो का कब्जा है। रेल्वे कर्मचारियों से ज्यादा सुविधा इन ठेकेदारों को प्राप्त हो रहा है,वहा पर रेल प्रशासन क्या कर रहा है यह सोचनीय प्रश्न है। क्या यह सारा खेल रेल्वे के अधिकारियों की मिली भगत से चल रहा है।शासकीय नियमो की धज्जियां बेखौफ होकर उड़ाई जा रही है।कई अफसर आये और चले गए पर इन ठेकेदारों व मजदूर यूनियन के नेताओ की मनमर्जी के खिलाफ कोई भी कार्यवाही आज तक नही हुई।रेलवे का यह दोहरा मापदंड समझ से परे है।

कर्मचारियों पर डेमेज शुल्क और ठेकेदारों को निशुल्क व्यवस्था जांच का विषय…

एक व्यक्ति जो रेल्वे की जमीन पर कब्जा कर रहा है उस ओर रेल प्रशासन नसमस्तक है वही दूसरी ओर रेलवे कर्मचारी का तबादला हो जाये,और उसने रेलवे क्वार्टर को खाली नही किया है तो उसको डेमेज शुल्क के साथ रेलवे को ज्यादा शुल्क जमा करना पड़ता है।अपने कर्मचारियों से ज्यादा शुल्क लेने वाला रेलवे प्रशासन कब्जाधारियों से अपने क्वार्टर्स को खाली नही करवा पा रहा है।यह मामला अपने आप मे समझ से परे है।

क्वार्टर्स के अलावा रेलवे की बड़ी जमीन पर वर्षों से काबिज ठेकदार

इन क्वार्टर के साथ ही रेलवे के सायकल स्टैंड के आगे भी ठेकेदार ने एक बडी जमीन पर भी अवैध तरीक़े से रूम का निर्माण कराके काबिज है।क्या रेलवे अपने ठेकेदारों को विशेष सुविधा भी देता है।अगर ऐसा ही चलना है तो रेल प्रशासन अपने नियमों की दुहाई देना बंद कर दे।क्या रेलवे के ठेकेदारो पर अतिक्रमण का नियम लागू नही होता?

इस मामले को लेकर हमने जब रेलवे जोन के सीपीआरओ साकेत रंजन से बात की तो उन्होंने कहा कि आपके सवाल का जवाब मैं व्हाट्सएप पर भेजता हु।पर सीपीआरओ साहब ने केवल यह मैसेज लिखकर भेजा कि रेलवे आवास का आवंटन रेल कर्मियों के आवासीय सुविधा के दृष्टिगत किया जाता है। इसका आवंटन क्वार्टर समिति निश्चित अंतराल पर करती है।अंततः हमारे मुख्य सवालों का जवाब हमको नही मिला।

रेलवे प्रशासन को अपनी सरकारी संपदा को बचाने के लिए विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है।इस पूरे मामले की अगर उच्च स्तरीय कमेटी के द्वारा जांच करवाई जाए तो बहुत से क्वार्टर्स की असलियत सामने आयेगी।साथ ही किन लोगों की मिलीभगत से यह कार्य संपादित हो रहा है।वह सब उजागर हो जाएगा।अब इस मामले में रेलवे जोन के अफसर क्या करेंगे यह देखना बाकी है।