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प्रदेश वनमंत्री के विभाग के अफसरों का बड़ा कारनामा, करोड़ो खर्च करने के बाद मिली मुर्रा भैंस

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रायपुर। वनभैंसा प्रजनन को लेकर वन विभाग के अधिकारियों की जमकर फजीहत हो रही है। वन विभाग के अधिकारी विलुप्त होती वनभैंसे की वंश वृद्धि के लिए क्लोन से वनभैंसा पैदा कराने के लिए ढाई करोड़ रुपए खर्च किए जब बच्चा बड़ा हुआ तो पता चला कि मुर्रा भैंस निकल गया। अब विभाग के अधिकारी सिर पकड़ के बैठे है, क्लोन से तैयार भैस को न तो किसी को देखने ढिया जा रहा है और न ही किसी को कुछ बताने के लिए तैयार है।

वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने बताया कि छत्तीसगढ़ के उदंती अभ्यारण में बाडे में रखी गई आशा नामक वनभैंसा के कान से सेल कल्चर लेकर दिल्ली के बूचड़खाने से देसी भैंस का अंडाशय लेकर अत्याधुनिक तकनीकी से क्लोन वनभैंसा पैदा कराया गया। वन विभाग के अधिकारियों की माने तो 12 दिसंबर 2014 को दीपआशा नामक क्लोन वनभैंसा नेशनल डेरी रिसर्च इंस्टिट्यूट करनाल में पैदा कराया गया। इसके बाद दीपआशा को 28 अगस्त 2018 को रायपुर लाया गया और तब से रायपुर स्थित जंगल सफारी में रखा गया है। गौरतलब है कि क्लोन हमेशा उसी के समान दिखता है जिससे सेल कल्चर लिया गया हो। दीपआशा के मामले में दीपआशा बिल्कुल वैसी ही दिखनी चाहिए जैसे कि उदंती की वनभैंसा आशा दिखती थी। लेकिन दीपआशा मुर्रा भैंस के समान दिखती है। वन भैंसों के सिंग बहुत लंबे होते हैं। वनभैंसा आशा के सिंग भी लंबे थे परंतु दीपआशा के सिंग मुर्रा भैंस के समान है और वह मुर्रा भैंस के समान ही दिखती है। इसके बाद 2018 में निर्णय लिया गया कि दीपआशा का डीएनए टेस्ट कराया जायेगा परन्तु दीप आशा 7 साल की हो गई लेकिन डीएनए टेस्ट आज तक नहीं करवाया गया।

आज तक नही बन पाया प्रोग्राम

दीपआशा के पैदा होने के 4 साल बाद अधिकारियों को यह विचार आया कि दीपआशा से बच्चे कैसे पैदा कराए जाएं ? इसलिए 2018 में मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) रायपुर की अध्यक्षता में मीटिंग की गई। मीटिंग में चर्चा हुई कि उदंती अभ्यारण के बाड़े में रखे गए प्रिंस, मोहन, वीरा, सोनू नामक वनभैंसा से अगर प्रजनन कराया जाना है तो उनका डीएनए टेस्ट कराया जाना चाहिए। क्लोन दीपआशा का भी डीएनए टेस्ट कराया जाना चाहिए। चर्चा हुई कि दीपआशा का प्रजनन कराने के लिए मोहन वनभैंसा को उदंती अभ्यारण से जंगल सफारी रायपुर लाया जावे। साथ ही निर्णय लिया गया कि दीपआशा का ब्रीडिंग प्रोग्राम बनाया जाए, जो की आज तक नहीं बनाया गया।

प्राकृतिक प्रजनन पर इंस्टिट्यूट ने की थी आपत्ति

इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट से राय लेने पर उन्होंने राय दी की दीपआशा पालतू भैंसों के बीच बड़ी हुई है, इसलिए वनभैंसा से प्राकृतिक प्रजनन कराना लड़ाई के दृष्टिकोण से खतरनाक हो सकता है। अगर वनभैंसा से प्राकृतिक प्रजनन कराया जावे तो जंगली जानवरों से कई बीमारियां फैल सकती है, इसलिए वीर्य का भी जांच कराया जाना चाहिए। 2020 में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने भी आपत्ति दर्ज की थी कि दीपआशा को प्रजनन के लिए वन में नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि उसे वहां घायल चोटिल होने की संभावना है। उन्होंने सुझाव दिया कि आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन पर विचार किया जावे।

आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन संभव नहीं

इस तकनीकी के तहत नर भैंसा से वीर्य इकट्ठा किया जाता है परंतु इसके लिए नर भैंसा को प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक होता है। यह कार्य उदंती में रखे गए वनभैंसों से कराया जाना लगभग असंभव है। इसी प्रकार महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में स्वतंत्र विचरण कर रहे वनभैंसों का भी वीर्य नहीं लिया जा सकता क्योंकि वनभैसे बहुत आक्रामक होते है।

इंटरब्रीडिंग कराने चले थे अधिकारी

मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी रायपुर की अध्यक्षता में 2018 में हुई मीटिंग में क्लोन दीपआशा की प्राकृतिक प्रजनन जिन वनभैंसा प्रिंस, मोहन, वीरा, सोमू से कराने की चर्चा की गई वह सभी वनभैंसा आशा की संतान है। क्लोन दीपआशा भी वनभैंसा आशा के सेल कल्चर से पैदा की गई है। इस प्रकार के एक ही जीन पूल के सदस्यों के मध्य प्राकृतिक प्रजनन से इंटर ब्रीडिंग की समस्या पैदा होगी। इसी प्रकार अगर किसी भी प्रकार से इनमें से किसी का वीर्य भी लिया जाता है तब भी इंटर ब्रीडिंग होगी।

सिंघवी ने बताया कि इस प्रकार दीपआशा से प्रजनन कराने के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं। अगर वन अधिकारी इस पर पहले विचार करते तो करोड़ों खर्च करा कर दीपआशा को पैदा ही नहीं कराते। 3 साल से उसे रायपुर की जंगल सफारी में कैद में रख रखा है। स्टाफ के अलावा कोई उसे देख नहीं सकता, कोई भी उसकी फोटो नहीं ले सकता। जबकि वनभैंसा सामाजिक प्राणी होते हैं और ग्रुप में रहते हैं।