वर्धा, दि. 03 अगस्त 2021 : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की जयंती पर ‘राष्ट्रकवि का राष्ट्रबोध’ विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा है कि राष्ट्र कवि की रचना ‘हिन्दू’ भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीयता का भाष्य पत्र है। उनकी कविताओं में भारत की निरंतरता और स्वतंत्रता का उद्घोष है।
कुलपति प्रो. शुक्ल ने मंगलवार (3 अगस्त) को राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की जयंती पर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा में कहा कि आजाद भारत किस दिशा में जाएगा इसका रास्ता राष्ट्र कवि गुप्त की रचनाओं में मिलता है। प्रो. शुक्ल ने कहा कि राष्ट्रकवि गुप्त के राष्ट्रबोध को समझना हो तो ‘भारत भारती’ और ‘भारत संतान’ कविताओं को समझना चाहिए। गुप्त की रचना ‘यशोधरा’ और ‘द्वापर’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि गुप्त की कविताओं में राम और भारत माता मूल्य, स्वर और आत्मा है. उनकी कविताओं का राष्ट्र भाव भारत की अनादी परंपरा का राष्ट्रभाव है। राष्ट्रकवि गुप्त की रचनाओं में ‘उर्मिला’ और ‘यशोधरा’ इन दो स्त्री पात्रों का उल्लेख करते हुए कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि ‘उर्मिला’ और ‘यशोधरा’ वर्तमान समय में स्त्री शक्ति को दिशा देने वाली नायिकाएं हैं।
कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सदानंद प्रसाद गुप्त ने कहा कि 20 वीं शताब्दी में मैथिलीशरण गुप्त का नाम प्रथम पंक्ति में है। भारत भारती उनके राष्ट्र बोध की बहुसांस्कृतिक अवधारणा है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के हिंदी विभाग की आचार्य प्रो. सुमन जैन ने गुप्त को स्त्री के मन को समझने वाले कवि बताया। उन्होंने यशोधरा और गौतम बुद्ध की चर्चा करते हुए गुप्त की रचनाओं में स्त्री सशक्तिकरण के विभिन्न आयामों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
वरिष्ठ कवि एवं चिकित्सक डॉ. ओ. पी. गुप्ता (सेवाग्राम, वर्धा) ने गुप्त के काव्य में उपयोगी मूल्यों की चर्चा करते हुए कहा कि गुप्त के समय की समस्याएं वर्तमान में भी हैं और वह जातिप्रथा, साम्प्रदायिकता के रूप में दिखाई देती हैं। डॉ. गुप्त ने वर्तमान सामाजिक स्थिति को लेकर गुप्त की रचनाओं पर चर्चा की।
मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. करूणा शंकर उपाध्याय
ने गुप्त की रचना ‘पंचवटी’ का संदर्भ लेते हुए इसे आत्मनिर्भरता से जोडा । उन्होंने कहा कि गुप्त ने अपनी रचनाओं में राम को जनसाधारण के पालनकर्ता के रूप में प्रस्तुत किया है।
कार्यक्रम का स्वागत एवं प्रास्ताविक वक्तव्य साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अवधेश कुमार ने किया। संचालन मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने किया। धन्यवाद साहित्य विद्यापीठ के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने ज्ञापित किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में सहभागी रहे।