छत्तीसगढ़ उजाला।
सबका मैला सर पर ढोकर,
वातावरण स्वच्छ बनता हूं|
मैला करने वाले शान से जीते,
मै अपमान भरा जीवन बिताता हूं|
कचरा मैला तुम फैलाते रहते हो,
मै समेटता फिरता रह जाता हूं|
तुम साफ सुथरे बने घूमते हो ,
मैं फिर भी कचरा वाला कहलाता हूं|
तुम बन जाते सम्मानित व्यक्ति,
मैं नीच जाती का कहलाता हूं|
गर एक दिन ना करू सफाई का काम,
खुद की गंदगी से हो जाओगे हलाकान|
मैंने दिया वातावरण स्वच्छ तुमको,
तुमने क्या किया! बस मुझसे घिन|
मैं सफाई कर्मी ओह! माफ़ कीजिए,
आप के हिसाब से कचरा वाला|
पूछता है सिर्फ एक ही सवाल,
अपने ह्रदय से देना मुझको आप जवाब|
गर कचरा फैलाने वाला है श्रेष्ठ,
तो फिर भला मैं कैसे हुआ अछूत?
सीमा सरू दर्शीनी
छत्तीसगढ़