बिलासपुर। छत्तीसगढ़ आटो चालक संघ द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने केंद्र व राज्य सरकार के अलावा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने कहा है। जवाब के लिए डिवीजन बेंच ने चार सप्ताह की मोहलत दी है। याचिकाकर्ता संघ ने लाकडाउन के प्रथम चरण में बेकारी का मुद्दा उठाते हुए सामाजिक कल्याण योजना सहित अन्य प्रमुख मांगों के क्रियान्वयन की गुहार लगाई है। याचिकाकर्ता संघ ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि बीते वर्ष केंद्र द्वारा लगाए गए देशव्यापी लाकडाउन का असर समाज के अन्य वर्ग के साथ ही उन पर भी पड़ा है। आटो चालकों पर इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिला है।
लाकडाउन और ट्रेन व सड़क मार्ग बंद होने के कारण इनका धंधा पूरी तरह ठप पड़ गया है। आटो चलाने के अलावा चालकों के पास और कोई काम नहीं रह गया है। इसके चलते आर्थिक संकट की स्थिति बनी। संघ ने अपनी याचिका में सामाजिक सुरक्षा कानून 2008 को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की है। याचिका में इस बात की जानकारी भी दी गई है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में आटो चालकों को छोड़ दिया गया है। योजना से वंचित होने के कारण उनको लाभ नहीं मिल पा रहा है। याचिका में तमिलनाडु में समाज कल्याण योजना के संचालन की जानकारी भी कोर्ट के समक्ष दी गई है। लाकडाउन के दौरान दिल्ली सरकार द्वार आटो चालकों को आर्थिक मदद देने की बात भी बताई है। बुधवार को जनहित याचिका पर कार्यकारी चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा व पीपी साहू की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता संघ की ओर से बहस करते हुए वकील ने सामाजिक सुरक्षा कानून के तहत आटो चालकों का पंजीयन करने, सामजिक कल्याण योजना प्रारंभ करने, पेट्रोल व डीजल में सब्सिडी देने के साथ ही राहत पैकेज की मांग की है।
कम बैठा रहे सवारी, हो रहा नुकसान
याचिकाकर्ता संघ के वकील ने कोविड-19 प्रोटोकाल के तहत आटो संचालन की अनुमति मिलने से होने वाले नुकसान का भी जिक्र किया है। आटो में पूरी सवारी बैठाने के बजाय कम बैठाना पड़ रहा है। शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करने के कारण आटो चालकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। जनहित याचिका की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने केंद्र व राज्य शासन के अलावा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं।