छत्तीसगढ़ उजाला बिलासपुर/ कोरबा
एसईसीएल देश में सर्वाधिक कोयला उत्पादन करने वाली कम्पनी है. साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का कोयला दो राज्यों, छत्तीसगढ एवं मध्य प्रदेश राज्य में फैला हुआ है तथा कम्पनी में 89-खदानें संचालित है जिसमें 35-खदानें मध्य प्रदेश राज्य में और 54-खदानें छत्तीसगढ राज्य में है. इसके साथ ही कोल इंडिया लिमिटेड से लीज आधार पर पश्चिम बंगाल में दानकुनी में स्थित कोल कार्बोनाईजेशन प्लांट दानकुनी कोल काम्पलैक्स (डीसीसी) का भी संचालन करती है.कोल इंडिया देश की नवरत्न कंपनियों में शुमार है।जिसमे सर्वाधिक कोयला कोरबा जिले की गेवरा, दीपका व कुसमुंडा से प्राप्त होता है।आज भी इन क्षेत्रों में एसईसीएल प्रबंधन का कोल उत्पादन पर विशेष ध्यान रहता है।
एसईसीएल इन क्षेत्रों में कोयला उत्खनन को लेकर बड़े पैमाने पर लोगो की जमीनो का अधिग्रहण समय समय पर करती रहती है।अधिग्रहण हुई जमीनों पर जमीन मालिक को अच्छा खासा मुआवजा व रोजगार देने का नियम बना हुआ है।सरकार ने बहुत से नियमो तो वैसे बना रखे है।पर आज भी एसईसीएल में भूविस्थापितो के बहुत से मामले सुनने व देखने मे आते है। आज भी बहुत से किसानों व ग्रामीणों को मुआवजा एसईसीएल प्रबंधन के द्वारा नही दिया गया है।
एसईसीएल के दीपका क्षेत्र में भूविस्थापित ग्रामीणो ने खदान का काम ठप्प कर दिया।इस मामले की जानकारी बिलासपुर मुख्यालय में बैठे सीएमडी पंडा को मिल गयी थी।इतनी बड़ी घटना पर भी सीएमडी मुख्यालय के अपने एसी कार्यालय में ही बैठे रहे।सीएमडी का यह व्यवहार समझ से परे है।खदान का काम बंद होना कोई छोटी बात नही कही जा सकती।इस मामले पर सीएमडी पंडा के ऊपर भी कार्यवाही होनी चाहिये।
एसईसीएल मुख्यालय में पदस्थ अफसरो को अपने एसी चेम्बर से बाहर निकलने की फुर्सत ही नही है।ऐसा प्रतीत होता है कि एसईसीएल प्रबंधन इन भूविस्थापितो की समस्या को जानने समझने की जहमत उठाना ही नही चाहता है।भारत सरकार को इन सब मामलों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।एसईसीएल के अफसरों को तो इन भूविस्थापित लोगो की समस्या दिखती ही नही है।काफी समय से ग्रामीण अपनी जिजीविषा के लिए संघर्ष कर रहे है।देश के कोयला मंत्री को इन भूविस्थापित ग्रामीणों की समस्या का समाधान करना चाहिए।सरकार कब इन भूविस्थापित लोगो को न्याय दिलाएगी?
भूविस्थापितो के मामले से एसईसीएल प्रबंधन की लाचारी हुई उजागर |
भूविस्थापित आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत है। |
दीपका खदान का काम आज दिनभर ठप्प ही रहा।काम बंद होने से आज एसईसीएल को बड़ा आर्थिक नुकसान भी हुआ होगा।इस नुकसान के लिए कही न कही प्रबंधन जिम्मेदार है। |
एसईसीएल के सीएमडी पंडा दीपका खदान में इतनी बड़ी घटना के होने के बाद भी आज मुख्यालय में ही रहे।शायद सीएमडी को भूविस्थापितो की समस्या से कोई सरोकार ही नही है? |
एसईसीएल कोरबा की दीपका कोयला खदान के भूविस्थापित अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन के लिए महाप्रबंधक कार्यालय के पास इकट्ठे हुए।बडी संख्या में लोगो ने इस आंदोलन में भाग लिया।काफी समय तक नारे बाजी करने के बाद बड़ी संख्या में भूविस्थापित ग्रामीण, बच्चों और महिलाओं के साथ दीपका खदान में घुस गए। इस दौरान इन्हें सीआईएसएफ के जवानों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, मगर लाठी-डंडों से लैस ग्रामीण किसी तरह अंदर घुसे और ओ बी तथा कोयले का उत्पादन रोक दिया। आज के इस आंदोलन से दीपका खदान का परिवहन कार्य भी ठप्प पड़ गया था।
भूविस्थापित ग्रामीण एसईसीएल प्रबंधन को पूर्व में भी कई बार अपनी समस्याओं को बता चुके है।पर कभी भी एसईसीएल प्रबंधन इन भूविस्थापित ग्रामीणों की समस्या पर ध्यान ही नही दिया। मुआवजे नही मिलने की वजह से भूविस्थापित ग्रामीण काफी आक्रोशित भी थे।
कुछ लोगो का कहना था कि हम वर्षो से एसईसीएल प्रबंधन को अपनी समस्या बता चुके है।पर हमारी समस्या को सुनने के बाद भी हमे अपना अधिकार नही मिल रहा है।कोरोना जैसी विपदा में हम लोग अपना जीवन कैसे चला रहे है।यह जानने तक का समय एसईसीएल के सीएमडी को नही है।अपने एयरकंडीशन रूम से बाहर निकलने की फुर्सत ही नही है।कई सालों के बीत जाने के बाद भी एसईसीएल प्रबंधन के द्वारा अनेक भूविस्थापितों को मुआवजा और रोजगार नहीं दिया गया है।ऐसे मामलों की ओर केंद्र की सरकार कब कोई ठोस कदम उठाएगी यह देखेना फिलहाल बाकी है।
दीपका खदान में आज जो घटना हुई इस पर हमने एसईसीएल के जीएम (पब्लिक रिलेशन) सक्सेना व पीआरओ चंद्रा से बात की तो उनका जवाब पूरी तरह से गोलमाल सा था।भूविस्थापितो की समस्या पर सही जवाब देने में दोनो अफसर प्रबंधन को बचाने ने लगे रहे।इन दोनों अफसरों का कहना था कि इस मामले की बात अभी दीपका क्षेत्र के अफसर भूविस्थापित ग्रामीणों से कर रहे है।समाधान निकालने के लिए जिला प्रशासन के समक्ष इनके साथ बैठेंगे।हमने एक बात यह भी कही की जब दीपका खदान में काम बंद होने की खबर बिलासपुर मुख्यालय तक आ गयी तब भी सीएमडी पंडा भूविस्थापित ग्रामीणों से मिलने क्यो नही गए तो इस सवाल का भी जवाब इन अफसरों के पास नही था।
आज देश की नवरत्न कंपनी में शुमार कोल इंडिया के अभिन्न अंग एसईसीएल में भूविस्थापित ग्रामीणों के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है।तो आप कल्पना कर सकते है कि बाकी जगह के हालात कैसे होंगे।इस मामले पर भारत सरकार को तत्काल कोई ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।जिससे भूविस्थापित ग्रामीणों को न्याय मिल सके।