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रणनीतिकार आप को भी नहीं आक रहे कमतर, 70 विधानसभा में 64 से अधिक में आप के ही विधायक

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दिल्ली लोकसभा चुनाव में अभी तक दो राष्ट्रीय पार्टी का ही सिक्का चला है। समय के साथ इन पार्टियों का चुनाव चिन्ह जरूर बदले लेकिन मतदाताओं का रुख बदला नहीं दिखा। निर्दलीय व अन्य क्षेत्रिय पार्टियों के उम्मीदवारों को दिल्ली अभी तक नकाराती रही है। हालांकि इस बार का चुनावी दंगल रोचक है। पहली बार वैसी पार्टी भी अपना दमखम लगा रही है जिनका विधानसभा क्षेत्रों में दबदबा है और सरकार भी आम आदमी पार्टी की ही है। सत्रहवीं लोकसभा चुनाव में पहली बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की बहुमत वाली सरकार के प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में है। लिहाजा मुकाबला रोचक होने वाला है। 70 विधानसभा में 64 से अधिक में आप के ही विधायक हैं। रणनीतिकार आम आदमी पार्टी को भी कमतर नहीं आक रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कुल वोट का 32.9 प्रतिशत वोट के साथ 10 विधानसभा में पार्टी के प्रत्याशियों ने भाजपा के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया था। पिछले चुनाव में कांग्रेस अपना जनाधार खो चुकी थी। 2009 के चुनाव में जहां कांग्रेस को कुल वोट का 57.11 प्रतिशत वोट मिला था और 68 विधानसभा में बढ़त मिली थी तो 2014 के चुनाव में यह घटकर 15.01 प्रतिशत तक पहुंच गया। हालांकि इस बार कांग्रेस दोबारा पूरी ताकत के साथ सातों सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के सातों प्रत्याशी जीते थे। 60 विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन के साथ कुल वोट का 46.7 प्रतिशत मत भाजपा को मिला था। इस बार देखना है कि भाजपा का पलड़ा भारी रहता है कि आप व कांग्रेस का। राजधानी के मतदाताओं में भाजपा-कांग्रेस को छोड़ अन्य कोई राजनीतिक पार्टी पैठ अभी तक नहीं बना सकी है। सभी चुनाव में अन्य राजनीतिक दलों को दिल्ली की जनता नकारती रही है। यहां तक की चुनाव चिह्न भी बदले जैसे कांग्रेस चार लोकसभा चुनाव दो बैलों का जोड़ा चुनाव चिन्ह पर लड़ी उसके बाद दो लोकसभा चुनाव गाय-बछड़ा चुनाव चिह्न पर फिर 1980 के चुनाव में हाथ छाप पर लेकिन इसी पार्टी के उम्मीदवार जीत दर्ज करते रहे। इसी तरह जनसंघ पांच लोकसभा चुनाव दीया चुनाव चिन्ह पर लड़ी और भाजपा में विलय के बाद कमल चुनाव पर लड़ी लेकिन प्रत्याशी इन्हीं पार्टियों के जीतते रहे। इसी तरह वक्त के साथ कांग्रेस और जनसंघ के चुनाव चिन्ह तो जरूर बदले पार्टियों में टूट-फूट भी हुई लेकिन मतदाताओं का प्रेम भाजपा पूर्व में जनसंघ-कांग्रेस को छोड़ दूसरे पार्टियों के तरफ कम ही गया। 1977 के चुनाव में भारतीय लोक दल के प्रत्याशियों ने दिल्ली की सातों सीट पर विजय हासिल की, लेकिन इनमें ज्यादातर जनसंघ के ही चेहरे थे। जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी, विजय कुमार मल्होत्रा, सिकंदर बख्तए किशोरी लालए ब्रह्म प्रकाश जैसे नेता शामिल थे। इसी तरह वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल से 1998 में एक ही उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र के तारिफ सिंह सांसद चुने गए थे।