शाजापुर : प्यार में इंसान क्या कुछ नहीं कर गुज़रता। प्यार का जूनून इस कदर सवार रहता है कि कोई प्यार में अपनी जान दे देता है, तो कोई जान ले लेता है। प्यार की निशानी को ज़िंदा रखने के लिए कोई ताजमहल बनवाता है तो कोई पहाड़ का सीना चीर देता है। ऐसे कई तमाम खबरें आपने पढ़ी और सुनी होगी लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसा बताने जा रहे है, जो शायद ही आपने सुनी होगी। तो आइये चलते है प्यार के इस सच्ची घटना को आपके सामने पेश करने
कहानी है प्रकृति की गोद में बसे मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के अंतर्गत आने वाले एक सुदूर गाँव सांपखेड़ा की जहाँ प्यार की एक अनोखी गाथा सुनने को मिलेगी, कोरोना काल में कई लोगों ने अपने परिवार के लोगों,रिश्तेदारों को खोया है ऐसा ही एक वाक़या इस सांपखेड़ा गाँव में हुआ जहाँ एक पति ने कोरोना से अपनी पत्नी को खोया है। पत्नी की कोरोना से मौत होने पर पति और बेटों ने मिलकर एक मंदिर बना दिया। परिवार से सभी सदस्य रोज सुबह-शाम पूजा अर्चना करते हैं।
प्रेम की इस अनूठी मिसाल को पेश किया है, शाजापुर जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर सांपखेड़ा गांव में रहने वाले नारायण सिंह ने जिन्होंने कोरोना से अपनी पत्नी गीताबाई को खोया है। धार्मिक प्रवृत्ति के नारायण सिंह को अपनी पत्नी से बेहद लगाव था। माँ के जाने के बाद बेटे भी पूरी तरह से टूट चुके थे, क्युकी उनके सर से माँ का साया हमेशा हमेशा के लिए दूर हो गया था। सदमे से निकलने और अपनी माँ, पत्नी की यादों को सहेज के रखने के लिए उन्होंने घर के बाहर एक मंदिर बनाने का विचार मन में लाया और आखिरकार परिजनों की इच्छा पर नारायण सिंह ने अपनी पत्नी का मंदिर बनवाया है, जहाँ रोज सुबह शाम परिजन जाकर वहाँ पूजा करते है।
राजस्थान के मूर्तिकारों से बनवायी गई मूर्ति
पत्नी की मौत के तीसरे ही दिन पति और महिला के बेटों ने अलवर राजस्थान में गीता बाई की मूर्ति बनवाने का ऑर्डर दिया। मौत हो जाने के लगभग डेढ़ माह बाद तीन फ़ीट बड़ी यह सुंदर प्रतिमा को मूर्तिकारों ने आखिरकार मूर्त रूप देकर उनके परिजनों को दिया, जिसे देख परिजनों को एक पल के लिए ये लगा की गीता बाई वापस आ गई है। परिजनों ने अपने घर के बाहर एक छोटा सा मंदिर बनाकर उसमें पूरे विधि विधान के साथ मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की। अब हर रोज सुबह शाम नारायण सिंह और उनके बेटे नियमित पूजा करते हैं।
पत्नी को दिया देवी का दर्जा
प्राचीनकाल से ही महिलाओं को पूजा जाता है। उन्हें देवी का रूप माना जाता रहा है, लेकिन गीता बाई के जाने के बाद उसकी याद में उसकी मूर्ति स्थापना कर नारायण सिंह ने अपनी स्वर्गवासी पत्नी को देवी का दर्जा दिया है। महिला के बच्चे भी यही चाहते थे कि उनकी माँ हमेशा उनके साथ रहे और उस प्रतिमा को साक्ष्य मान उन्हें मंदिर में स्थापित कर लिया। अब गीता बाई अपने परिवार के साथ सदैव रहेगी। वहीं नारायण सिंह भी अपनी पत्नी को देवी स्वरूप मानते है और उनके आचरण और संयमित जीवन शैली की तारीफ़ करते नहीं थकते। तो ये थी एक सच्ची घटना जिसने प्रेम को अमर कर दिया है।