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काबुल से भारतीयों की वापसी नहीं थी आसान; रूस-अमेरिका ने की मदद, हामिद करजई से भी साधा गया संपर्क: रिपोर्ट

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तालिबान के लड़ाके ने जैसे ही 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा (Taliban Captures Afghanistan) किया हर तरफ अफरातफरी मच गई. अमेरिका सहित दुनिया के तमाम बड़े देश अपने दूतावास के स्टाफ को बाहर निकालने में जुट गए. काबुल में भारतीय दूतावास के भी स्टाफ फंस गए. इन्हें निकालना आसान नहीं था. हर तरफ तालिबान के लड़ाके हथियार लहराते हुए सड़क पर घूम रहे थे. इसके अलावा तालिबान ने सुरक्षा की ज़िम्मेदारी खतरनाक हक्कानी नेटवर्क को दे रखी थी. सिर्फ एयरपोर्ट पर अमेरिकी सेना का कब्जा था. लिहाज़ा भारत ने अपने दूतावास स्टाफ और अन्य नागिरकों को बाहर निकालने के लिए न सिर्फ अमेरिका से मदद ली, बल्कि अफगानिस्तान के दो बड़े नेताओं से भी सम्पर्क साधा. वो नेता जो सीधे तालिबान के सम्पर्क में थे. इसके अलावा भारत को इस मिशन में रूस ने भी मदद की.

जिन अफगानी नेताओं ने भारत की मदद की वो हैं- पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और पूर्व उपराष्ट्रपति अब्दुल्ला अब्दुल्ला. वो अशरफ गनी की अपदस्थ सरकार में सुलह के लिए गठित राष्ट्रीय उच्च परिषद के अध्यक्ष भी थे. राजदूत रुद्रेंद्र टंडन सहित पूरे भारतीय दूतावास को खाली करने का फैसला गनी सरकार के पतन के बाद लिया गया था. इसके अलावा काबुल के ग्रीन ज़ोन में सुरक्षाकर्मियों को हटा लिया गया था. इसी इलाके में सभी देशों के दूतावास हैं.