वर्धा, 9 अगस्त 2021: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘अगस्त क्रांति दिवस’ के उपलक्ष्य में सोमवार, 9 अगस्त 2021 को आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के कुलपति प्रो. संजीव शर्मा ने कहा कि एक दूसरे को जोड़ने का भाव भारतीय परंपरा में ही है. सबके कल्याण की भावना ही भारत को जोड़ना है. भारत को पहचान कर ही हम भारत जोड़ो का संकल्प पूरा कर सकते हैं.
दो सत्रों में आयोजित संगोष्ठी का पहला सत्र ‘भारत छोडो़ आंदोलन और वर्धा’ विषय पर तथा दूसरा सत्र ‘भारत छोडो़ से भारत जोड़ो’ विषय पर आयोजित किया गया. दोनों सत्रों की अध्यक्षता महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने की.
विश्वविद्यालय के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विद्या भवन स्थित कस्तूरबा सभागार में ‘भारत छोडो़ से भारत जोड़ो’ विषय पर संबोधित करते हुए प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि भारत को जोड़ने की दिशा में व्यक्ति, समाज और सम्प्रदायों के बीच जुड़ाव होना आवश्यक है.
उन्होंने कहा कि भारत जोड़ो भारतीयों का आंदोलन है. समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सम्मान का भाव ही भारत जोड़ो के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है और इसके लिए एकात्मता एक महत्वपूर्ण तत्व है. उन्होंने कहा कि असहमति का सम्मान करना भी एक प्रकार से जोड़ना ही है.
कार्यक्रम में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के प्रति कुलपति प्रो. जी. गोपाल रेड्डी ने बतौर मुख्य वक्ता संबोधित किया. उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए कहा कि यह एक समेकित और विद्यार्थी केंद्रित शिक्षा नीति है. इस नीति के अंतर्गत भारत विश्व गुरु बनने की दिशा में अग्रसर हो रहा है. अपने अध्यक्षीय उदबोधन में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि भारत जोड़ो आंदोलन का प्रारंभ वर्धा नगरी से ही हुआ है. इसके लिए महात्मा गांधी, बाबा आमटे, सुब्बाराव आदि द्वारा चलाए गये आंदोलनों से वर्धा एक आदर्श उदाहरण बन गया है. भारत सभ्यता का आधुनिक राष्ट्र है. हमारी बहुभाषिकता पूरी दुनिया के लिए बड़ी ताकत है. भारत की भाषाओं को जोड़ने से भारत जोड़ो की दिशा में हमारी शक्ति और बढ़ सकती है. उन्होंने कहा कि भारत जोड़ो का तात्पर्य विश्वास करना, भारत को जानना, मानना और भारत का बनना है.
विश्वविद्यालय के तुलसी भवन स्थित गालिब सभागार में संगोष्ठी के पहले सत्र में ‘भारत छोडो़ आंदोलन और वर्धा’ विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सदस्य सचिव प्रो. कुमार रत्नम ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास पर प्रकाश डा़ला. उन्होंने कहा कि इस आंदोलन का कालखंड एक निर्णायक कालखंड था. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा के प्रयोग कर जनमानस को एकत्र करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के कार्यकारिणी सदस्य प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने संबोधित किया. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन और महात्मा गांधी के संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि चंपारन का आंदोलन महात्मा गांधी की पहली प्रयोगशाला थी. गांधी ने आश्रमों के माध्यम से आंदोलन को जनमानस तक पहुंचाया. गांधी ने वर्धा रहते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए. 1934 से 1942 इस आठ वर्षों के कालखंड में स्वतंत्रता के आंदोलन को गति प्राप्त हुई और इससे वर्धा प्रस्ताव का उद्घोष हुआ.
सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि गांधी की अहिंसा ने मनुष्य के कल्याण का रास्ता दिखाया है.
प्रथम सत्र का स्वागत वक्तव्य संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी ने दिया. प्रास्ताविक वक्तव्य शिक्षा विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. मनोज कुमार ने दिया. संचालन गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डॉ. मनोज राय ने किया तथा धन्यवाद दर्शन एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. जयंत उपाध्याय ने ज्ञापित किया.
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में विषय प्रास्ताविकी मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने प्रस्तुत की. संचालन डॉ. सुशील कुमार त्रिपाठी ने किया तथा धन्यवाद महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. के बालाराजु ने ज्ञापित किया. सहायक प्रोफेसर डॉ. जगदीश नारायण तिवारी द्वारा मंगलाचरण की प्रस्तुति से कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल, प्रो. चंद्रकांत रागीट, अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्ष, अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे.