वक्त बे वक्त पर प्रकृति,
हमको करती रही आगाह|
पर हम मानव तो हो गये,
लालच में अंधे बेपनाह|
कहीं लगाई कई फैक्ट्रियां,
कहीं खड़े किये बड़े मकान|
जब सांस लेने में हुई दिक्कत,
तो मचा रहे क्यों इतना बवाल|
अहंकार में इतने तुम डूब गए कि,
प्रकृति का जरा भी न रखा खयाल
हवा और पानी में जहर घोलना,
तुम्हारा ही तो रहा है यह काम|
अब क्यूं प्रकृति पर लगा रहे,
तुम चीख चीख कर इल्जाम|
आज के सभी हालातो के,
सिर्फ तुम ही हो जिम्मेदार|
सम्भल जाओ हे! मानव वरना,
इसे भी भयावह होंगे परिणाम|
सीमा वर्मा (सरु दर्शिनी)
बिलासपुर छत्तीसगढ़