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राजनीति से बिल्कुल अलग आज बात फ़िल्मी दुनिया की… पूत सपूत तो का धन संचय पूत कपूत तो का धन संचय…..

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राजनीति से बिल्कुल अलग आज बात फ़िल्मी दुनिया की…
पूत सपूत तो का धन संचय
पूत कपूत तो का धन संचय


अत्यन्त प्राचीन उपरोक्त भारतीय लोकोक्ति के दोनों पक्षों का उदाहरण बन गए भारत के एक सर्वकालीन सर्वाधिक चर्चित फिल्मस्टार, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर की आज पुण्यतिथि है। इस फिल्मी सितारे ने अपने जीवन में दुनिया को यह दिखाया कि “पूत सपूत तो का धन संचय”। अपनी मृत्यु के पश्चात दुनिया को यह संदेश भी देकर गया कि “पूत कपूत तो का धन संचय”

मैं बात कर रहा हूं लगभग 100 वर्ष से अधिक की आयु पूरी कर चुके भारतीय फिल्म उद्योग के इतिहास के एकमात्र “ग्रेट शोमैन” राजकपूर की।भारतीय फ़िल्म उद्योग में उनसे पहले किसी अन्य को ग्रेट शो मैन नहीं कहा गया। उनके बाद कुछ लोगों ने प्रायोजित तरीके से मीडिया में खुद को “ग्रेट शो मैन” लिखवाया। लेकिन ऐसी हर कोशिश ने कुछ समय बाद ही दम तोड़ दिया।


यूं तो हर वर्ष राजकपूर की पुण्यतिथि और जन्मतिथि आती है। लेकिन कुछ ही दिन पूर्व एक ऐसे समाचार पर मेरी नजर पड़ी थी। जिसे पढ़ने के पश्चात वह खबर मन मे चुभ गयी थी। उसी समय सोचा था कि राजकपूर की पुण्यतिथि पर इस खबर पर अपनी बात लिखूंगा। वह समाचार यह था कि राजकपूर का बंगला बिक रहा है। उनके सबसे बड़े बेटे रणधीर कपूर ने इसकीं पुष्टि कर दी थी। राजकपूर द्वारा निर्मित प्रख्यात आरके स्टूडियो को भी उनके तीनों बेटों ने आज से कुछ वर्ष पूर्व मई 2019 में बेच डाला था। उस पर बुलडोजर चल चुका है और वहां आलीशान कमर्शियल/रेसिडेंशियल कॉम्प्लेक्स बन रहा है।


आरके स्टूडियो भारतीय फिल्म उद्योग के इतिहास का एक स्वर्णिम पन्ना है। लेकिन राजकपूर को वह विरासत में नहीं मिला था।अपने समय के प्रसिद्ध कलाकार पृथ्वीराज कपूर की संतान राजकपूर को दौलत शोहरत विरासत में नहीं मिली थी। पृथ्वीराज कपूर पृथ्वी थियेटर्स नाम की थियेटर कंपनी चलाते थे। 24 वर्ष में अपनी फिल्म कंपनी आरके स्टूडियों का गठन कर के 1948 में एक फ्लॉप फ़िल्म आग के साथ फ़िल्म निर्माण की शुरुआत से राजकपूर ने सबक सीखा था। अपने पिता के पृथ्वी थिएटर के नाटकों में तबला और हारमोनियम बजाने वाले दो नौजवानों की प्रतिभा पहचान कर राजकपूर ने उन दोनों को 1949 में अपनी दूसरी फ़िल्म बरसात का म्यूजिक डायरेक्टर बना दिया था। न्यूकमर लता मंगेशकर को बड़ा अवसर दिया था। यह राजकपूर की परखी निगाहों का ही कमाल था कि बरसात ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। आज 72 साल बाद भी बरसात के गीत संगीत की लोकप्रियता ज्यों की त्यों है। आवारा श्री 420 सरीखी आरके बैनर फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्डतोड़ कमाई की। औऱ उसी 50 के दशक में राजकपूर ने मुंबई के चेम्बूर इलाके में आरके स्टूडियों की स्थापना की थी।अपने दम पर एक बड़ा साम्राज्य स्थापित कर के राजकपूर ने दुनिया को यह दिखाया था कि पूत सपूत तो क्या धन संचय।


अपनी सारी संपत्ति राजकपूर क्योंकि अपनी पत्नी के नाम कर गए थे। अतः उनके घर, उनके स्टूडियों के रूप में उनकी निशानी 2018 तक उनकी पत्नी के साथ जीवित रहीं। 2018 में पत्नी की मृत्यु के बाद बेटों ने 2019 में स्टूडियों बेच डाला। अब 2021 में इकलौते बचे बेटे और पौत्रों ने वह घर भी बेच कर दुनिया को दिखाया बताया कि… “पूत कपूत तो का धन संचय”


नई पीढ़ी को ज्ञात नहीं होगा कि 80 के दशक तक बंबई घूमने जाने वालों के लिए आरके स्टूडियों एक टूरिस्ट स्पॉट हुआ करता था।
आरके स्टूडियो में हर वर्ष होने वाला होली का उत्सव इतना भव्य हुआ करता था कि पूरा फ़िल्म उद्योग वहां होली खेलने पहुंचता था।
होली के बाद वाले फिल्मी पत्रिकाओं के अंक में आरके स्टूडियो की होली के फोटो विशेष आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे। एक छोटे से संग्रहालय में आवारा, बरसात, मेरा नाम जोकर फ़िल्म में पहनी गयी कॉस्ट्यूम तक को राजकपूर ने सहेज कर रखा था। सम्भवतः एक छोटा सा फ़िल्म म्यूजियम बना कर छोड़ जाने का उनका इरादा था।


लेकिन अपने जीवन में… “पूत सपूत तो क्या धन संचय” का संदेश देने वाले राजकपूर सम्भवतः दूसरी पंक्ति भूल गए थे कि… “पूत कपूत तो क्या धन संचय।”


उल्लेख कर दूं कि राजकपूर के बेटे पौत्र पौत्रियों कोई कंगाल नहीं हो गए हैं। करोड़पतियों की तरह आलीशान जिंदगी जी रहे हैं। लेकिन और… और… कुछ और कुछ और की लिप्सा पूर्वज के स्मृतिचिन्हों पर भारी पड़ी।

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Satish Chandra Mishra