डॉ. अनिल मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.एससी और वर्ष 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान विभाग से पीएचडी किया।
शनिवार को कोरोना की 2-डीजी दवा काफी सुर्खियों में रही। क्लिनिकल परीक्षण में सामने आया है यह दवा अस्पताल में भर्ती मरीजों के तेजी से ठीक होने में मदद करती है, अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता कम करती है। इस दवा को बनाने में डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनिल मिश्र ने अहम भूमिका निभाई है। डॉ. अनिल मिश्र के मुताबिक ये दवा बच्चों को भी दी जा सकती है और कोरोना भी ठीक होगा। केंद्र ने क्लीनिकल ट्रायल के बाद इसे मंजूरी दे दी है। आइए विस्तार से जानते हैं आखिर डॉ. अनिल मिश्र हैं कौन जिन्होंने कोरोना मरीजों के लिए इस तरह की गेमचेंजर दवा बनाई है…
डॉ. अनिल मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.एससी और वर्ष 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान विभाग से पीएचडी किया। इसके बाद वे फ्रांस के बर्गोग्ने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रोजर गिलार्ड के साथ तीन साल के लिए पोस्टडॉक्टोरल फेलो थे। इसके बाद वे प्रोफेसर सी एफ मेयर्स के साथ कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भी पोस्टडॉक्टोरल फेलो रहे। वे 1994- 1997 तक INSERM, नांतेस, फ्रांस में प्रोफेसर चताल के साथ अनुसंधान वैज्ञानिक रहे।
वर्ष 1997 में डीआरडीओ से जुड़े
डॉ. अनिल मिश्र 1997 में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज में शामिल हुए। वह 2002-2003 तक जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर और INMAS के प्रमुख रहे।
वर्तमान में फिर से डीआरडीओ में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर कार्यरत
डॉ. अनिल मिश्र वर्तमान में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन(डीआरडीओ) के साइक्लोट्रॉन और रेडियो फार्मास्यूटिकल साइंसेज डिवीजन में काम करते हैं। अनिल रेडियोमिस्ट्री, न्यूक्लियर केमिस्ट्री और ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में रिसर्च करते हैं। उनकी वर्तमान परियोजना ‘आणविक इमेजिंग जांच का विकास’ है।
पानी में घोलकर पीना होगी दवा
2-डीजी दवा पाउडर के रूप में पैकेट में उपलब्ध होगी। इसे पानी में घोलकर पीना होता है। डीआरडीओ के अनुसार 2-डीजी दवा वायरस से संक्रमित मरीज की कोशिका में जमा हो जाती है और उसको और बढ़ने से रोकती है। संक्रमित कोशिका के साथ मिलकर यह एक तरह से सुरक्षा दीवार बना देती है। इससे वायरस उस कोशिका के साथ ही अन्य हिस्से में भी फैल नहीं पाएगा।
ऐसे करेगी वायरस का खात्मा
यह दवा लेने के बाद मरीज की अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता कम होगी। विशेषज्ञों के अनुसार यदि वायरस को शरीर में ग्लूकोज न मिले तो उसकी वृद्धि रुक जाएगी। डीआरडीओ के डॉक्टर एके मिश्रा ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में बताया कि साल 2020 में ही कोरोना की इस दवा को बनाने का काम शुरू किया गया था। उन्होंने कहा कि साल 2020 में जब कोरोना का प्रकोप जारी था, उसी दौरान डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने हैदराबाद में इस दवा की टेस्टिंग की थी।