Home Uncategorized *जीवन प्रबंध का विज्ञान है गीता: रामकृष्ण गोस्वामी*

*जीवन प्रबंध का विज्ञान है गीता: रामकृष्ण गोस्वामी*

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वर्धा : दार्शनिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता तथा गीता मर्मज्ञ श्री राम कृष्ण गोस्वामी ने कहा है कि गीता मानव कल्याण का विज्ञान और जीवन प्रबंधन का शास्त्र है। श्री गोस्वामी आज महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा महाराष्ट्र के स्थापना दिवस पर ‘कोरोना विषाद मुक्ति : गीता, गांव, गाय व उच्च शिक्षा नीति’ पर आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे।

श्री गोस्वामी ने कहा कि महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम, मुक्ताबाई, रामदास स्वामी आदि संतों ने भक्ति आंदोलन खड़ा किया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने धर्म राज्य और रामराज्य की स्थापना कर लोक संग्रह तथा लोक चेतना का आगाज किया। शिक्षक, पत्रकार और राजनीतिज्ञ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने भगवद्गीता पर गीता रहस्य लिख कर गीता का दर्शन आत्मदर्शन और परमात्मा का दर्शन है, इसका प्रचार- प्रसार किया।

संगोष्ठी की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने की. संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप सेवानिवृत्त आईएएस डॉ. कमल टावरी ने तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में भक्त फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय, सोनीपत, हरियाणा की कुलपति प्रो. सुषमा यादव तथा राजस्थान बार काउंसिल के सदस्य डाॅ. महेश शर्मा ने विचार रखे। श्री गोस्वामी ने भगवद्गीता के विभिन्न अध्यायों का उल्लेख करते हुए गीता के दर्शन और नीति पर विस्तार से चर्चा की।


पूर्व आईएएस अधिकारी डाॅ. कमल टावरी ने कहा कि हमें गांधी और विनोबा के प्रयोगों को गाँव को केंद्र में रखकर अमल में लाने की आवश्यकता है. खाली पड़े संसाधनों का समुचित उपयोग करते हुए संस्थाओं को स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए. उन्होंने ‘संतों से समृद्धि’ का माडल वर्धा से विकसित कर उसका देशभर में एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करने का आह्वान किया।


भक्त फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय, सोनीपत, हरियाणा की कुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कहा कि कोरोना के विषाद में गांव ही मुक्ति का रास्ता दिखा सकते हैं. भारत को बचाने का श्रेय गावों के परिवेश और संस्कृति में ही है. उन्होंने गाय को अनेक दृष्टि से लाभकारी बताते हुए गाय के दूध और पंचगव्य के महत्व की चर्चा अपने वक्तव्य में…


राजस्थान बार काउंसिल के सदस्य डाॅ. महेश शर्मा ने कहा कि कोरोना के संकट में वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है जिसका लोगों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने गीता को आत्मकल्याण का ग्रंथ करार देते हुए कहा कि गाँव, गीता और गाय कोरोना विषाद से मुक्ति के साधन हैं।


अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि सन 1936 में महात्मा गांधी ने रचनात्मक कार्यक्रम के केंद्र में गांव को लक्ष्य रखा था. वर्धा को एक बार फिर केंद्र में रखकर उनके लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है. हिंदी विश्वविद्यालय इस दिशा में सचेष्ट है. प्रो. शुक्ल ने भगवद्गीता को आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और सृष्टि विकास का ग्रंथ बताते हुए कहा कि गाँव और गाय के आधार पर गीता जीवन में उतारी जा सकती है।


कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट ने मराठी भाषा में किया. उन्होंने आईएएस अधिकारी माणिक मुंडे द्वारा प्राप्त संदेश का वाचन भी किया।
कार्यक्रम का संचालन संगोष्ठी के संयोजक विश्वविद्यालय के दर्शन एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष तथा एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. जयंत उपाध्याय ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन दर्शन एवं संस्कृति विभाग के सहायक प्रोफेसर डाॅ. सूर्य प्रकाश पाण्डेय ने किया. डॉ. वागीश राज शुक्ल ने मंगलाचरण से कार्यक्रम की शुरुआत हुई.संगोष्ठी में अध्यापक, शोधार्थी तथा विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में सहभागिता की।