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चिर नवीन हैं चार्ली चैपलिन की फिल्में – डॉ. सुरभि विप्लव

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चार्ली चैपलिन एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही सभी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। एक विशेष प्रकार का पहनावा हमारी नजरों के सामने प्रस्तुत होता है, जिसमें ढीली पतलून, तंग कोट, छोटी टोपी, बड़े जूते,मुह पर छोटी मूछ और हाथ में पतली सी छ्ड़ी । लेकिन क्या हम जानते है जिस व्यक्ति ने पूरे विश्व के सिनेमा को प्रभावित किया लेकिन स्वयं उसका जीवन न्यूनतम गरीबी के संघर्ष के साथ जिया था। बचपन में जब उन्हें भोजन भी बहुत मुश्किल से मिल पाता था। माँ ‘हैना’ के गायन का जब दर्शकों ने तिरस्कार किया और खाने के लिए अन्न नहीं जुट पता था तब मंच के पीछे से आगे आते हुए महज पाँच साल का चार्ली गीत गाना शुरू कि। उस समय कौन जानता था, यह पाँच वर्ष का बालक पूरे विश्व सिनेमा की धारा ही बदल देगा और अपने अभिनय, निर्देशन और संगीत से दुनिया मेंज कीर्तिमान स्थापित करेगा। यही आरंभिक जीवन चार्ली का रहा जहां जीवन की शुरुआत ही कठिन संघर्षों से होता है। उन्होंने जिन भी चरित्रों का अभिनय अपने जीवन में किए, वे सभी उन्होने बारीकी से देखा, समझा और बुझा था। चैपलिन मूक फिल्मों के अभिनेता थे जिनकी अंतः प्रेरणा नेज विश्व मानवता में आशा जगाई। वे जब रंगमंच से अपना जीवन शुरू करते हैं, उसी समय सिनेमा का शैशव काल भी चल रहा था। उन्हें छोटे –छोटे दृश्य में हास्य पैदा करने के लिए लिया जाता था। अपने एक ही तरह के चरित्र से चार्ली बहुत प्रसन्न नहीं थे इसलिए वे अपने चरित्र में बदलाव लाना चाह रहे थे लेकिन साथ ही उन्होंने सिनेमा की ताकतवर भाषा को पहचान रहे थे कि यदि सिनेमा का विषय तार्किक हो तो इस बड़े कैनवस से अपनी बात अपनी विचारधारा आम जन तक पहुंचाई जा सकती है ।
1914 में पहला विश्वयुद्ध छिड़ चुका था और कुछ लोगों का विचार था कि अपने देश की देश की ओर से लड़ने के लिए चार्ली को ब्रिटेन लौट आना चाहिए था –वे अमरीकी नागरिक नहीं थे लेकिन दूसरे लोगों का ख्याल था कि चार्ली चैपलिन की फिल्में अधिक अच्छा काम कर रही थीं ये निराशा से भरी उस अवधि में लोगों को हंसा रही थी ,उनमें आशा जगा रही थी ।
मूक फिल्म युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक चैपलिन, जिन्होंने अपनी फिल्मों में अभिनय, निर्देशन, पटकथा, निर्माण और अंततः संगीत दिया। पूरे विश्व में सिनेमा को गढ़ने के कार्य में उनके जीवन के 75 वर्ष बीते, विक्टोरियन मंच और यूनाइटेड किंगडम के संगीत कक्ष में एक शिशु कलाकार से लेकर 88 वर्ष की आयु में लगभग उनकी मृत्यु तक। उनकी उच्च-स्तरीय सार्वजनिक और निजी जिंदगी में अतिप्रशंसा और विवाद दोनों सम्मिलित हैं। 1919 में ‘मेरी पिकफोर्ड’, ‘डगलस फेयरबैंक्स’ और ‘डी.डब्ल्यू.ग्रिफ़िथ’ के साथ चैप्लिन ने यूनाइटेङ आर्टिस्टस की सह-स्थापना की थी। चार्ली ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें ‘द किड्स’, ‘द गोल्ड रश’, ‘ए वुमेन इन पैरिस’,द सर्कस ,सिटी लाइट , ‘द माडर्न टाइम्स’, ‘द ग्रेट डिक्टेटर’,मोर्डेन टाइम्स ,मोनसीर वेर्दौक्स ,लाईम लाइट ,अ किंग इन न्यू न्यूयार्क, अ काउंटएस्स फ्राम हाँग काँग आदि हैं ।
चार्ली चैपलिन की अधिकांश फिल्मों का संबंध गंभीर मुद्दों से था, लेकिन अपने विशेष हास्यास्पद, सहज एवं स्वाभाविक अंदाज में –गिरते –पड़ते सिक्के लुटाते और सड़क पर किसी का पीछा करते या किसी से बच निकलने के लिए भागते हुये । प्रत्येक शॉट ठीक तरह से लेने के लिए उस पर कड़ी मेहनत की जाती थी, भले ही वांछित प्रभाव पैदा करने के लिए चैपलिन को कितनी ही बार क्यों न गिरना पड़ा हो …..।
चैप्लिन: अ लाइफ (2008) किताब की समीक्षा में, मार्टिन सिएफ्फ़ ने लिखा है कि : ” चैपलिन सिर्फ ‘बड़े’ ही नहीं थे, वे विराट् थे। 1915 में, वे एक युद्ध प्रभावित विश्व में हास्य, हँसी और राहत का उपहार लाए जब यह प्रथम विश्व युद्ध के बाद बिखर रहा था। अगले 25 वर्षों में, महामंदी और हिटलर के उत्कर्ष के दौरान, वह अपना काम करते रहे। वह सबसे बड़े थे। यह संदिग्ध है की किसी व्यक्ति ने कभी भी इतने सारे मनुष्यों को इससे अधिक मनोरंजन, सुख और राहत दी हो जब उनको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। यही विश्व मानवता की सेवा है। चैप्लिन ने कहा है कि “मुझे पता नहीं था कि कैसा मेकअप करना है। मुझे ‘मेकिंग अ लिविंग’ में एक प्रेस रिपोर्टर के रूप में अपना पात्र पसंद नहीं आया। लेकिन अलमारी की ओर जाते हुए मैंने सोचा कि मैं बैगी पैंट, बड़े जूते, एक छड़ी और एक डर्बी टोपी पहनूँगा। मैं सब कुछ में अंतर्द्वंद्व चाहता था। मैं दुविधा में था कि बड़ा दिखूं या छोटा, लेकिन सेनेट को याद किया तो वह चाहता था कि मैं एक वृद्ध आदमी लगूं, मैंने एक छोटी मूछ लगाई, जो मुझे लगा कि मुझे बड़ा दिखाएगी, मुझे भूमिका का पता नहीं था। लेकिन जब में तैयार हो गया तो उन कपडों और मेकअप में मुझे वो व्यक्ति महसूस हुआ। मैं उसे जानने लगा और जब तक मैं स्टेज पर पहुंचा तब तक वह मेरे अंदर जन्म ले चुका था।”
चैपलिन की सभी संयुक्त कलाकार फीचर फिल्में लंबाई, असामान्य अभिनय के साथ शुरु होती थी जिसमें चैपलिन की सिर्फ एक छोटी सी भूमिका होती थी उनके द्वारा निर्देशित ‘अ वूमन ऑफ़ पैरिस फिल्म 1923’ आई। इसके बाद क्लासिक हास्य ‘गोल्ड रश (1925’) और ‘द सर्कस (1928)’। चार्ली की गोल्ड रश आज भी यदि आप देखें तो मन विचलित हो जाता है कि अलश्का के बर्फ में जीवन की पहली आवश्यकता जो भूख है उसके प्रतिबिंब को कितना प्रतिकात्मक रूप से दिखाया गया है । जहां भूख को शांत करने के लिए अपने जूते लेश को नमक लगाकर चार्ली खाते हैं। दर्शक इस दृश्य को देखकर भले ही हसता हो लेकिन यह व्यंग है कि मानव की क्या स्थिति है । गोल्ड रश एक क्लासिक फिल्म है जिसकी कई परतें हमें दिखती हैं यह फिल्म कई सवाल छोड़ती है जो आज भी प्रसांगिक है । इसी तरह उनकी फिल्म द किड एक बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी है जहां वह एक अनाथ बच्चे का भरण पोषण करते हैं यह फिल्म भी उस दौर के सामाजिक स्थितियों को ब्यान करती है ।
चार्ली की एक और महत्वपूर्ण फिल्म ‘मौडर्न टाइम्स’ का विश्व प्रीमियर (1936), न्यूयॉर्क में कई ध्वनि फ़िल्मों के आगमन के बाद हुआ लेकिन यह फिल्म पूरी दुनिया में धूम मचा दी। यह मूलतः मूक फिल्म थी जिसमें संगीत और ध्वनि, प्रभाव के साथ सफल रही। यह फिल्म आज भी अपनी प्रासंगिकता के साथ बनी हुई है 1936 में बनी फिल्म आज के मशीनी युग कि व्यथा को प्रस्तुत करती है जहां मशीन ने किस तरह मनुष्य के स्थान को तो ले लिया है पर उसके अंदर रत्ती भर संवेदना नहीं है। यह फिल्म कई प्रश्नो को खड़ा करती है खासकर कर औद्दौगिक क्रांति के बाद का समय जहां मनुष्य पूरी तरह मशीन पर निभर हो गया है । मौडर्न टाइम्स’ फिल्म बनाने से पूर्व चार्ली गांधी से मिल चुके थे जिसका असर भी हमें साफ–साफ दिखता है कि यह मशीनी युग मानव को बेरोजगार तथा संवेदनहिन बना है । ‘मौडर्न टाईम्स (1936’) मूक थी, इसमें बातचीत ज़्यादातर निर्जीव वस्तुओं से आती है जैसे की रेडियो या किसी टीवी मांनीटर से। यह 1930 दशक के दर्शकों की मदद के लिए किया गया था, जिन्हें मूक फिल्में देखने की आदत नहीं रही थी, ताकि वे बिना बातचीत की फिल्म में समायोजित हो पाएँ। ‘मौडर्न टाईम्स’ पहली फिल्म थी जिसमें चैप्लिन की आवाज़ सुनी गई थी (अंत में एक गाने में, जिसे उन्होंने खुद लिखा और प्रदर्शन किया था। हालांकि, कई दर्शक इसे अभी भी एक मूक फिल्म-और एक युग का अंत मानते हैं। उनकी अन्य फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ में यकीनन कॉमेडी और भावुकता का सबसे सही संतुलन था। अंतिम सीन में, समीक्षक जेम्स एगी ने 1949 में लाइफ पत्रिका में लिखा था कि यह “अभिनय का सबसे बड़ा एक टुकड़ा था जो कभी फिल्मों में प्रतिबद्ध किया गया था।” हॉलीवुड में चैप्लिन की बोलती फिल्में ‘द ग्रेट डिक्टेटर (1940)’, ‘मोंसिओर वरडॉक्स (1947)’ और ‘लाइमलाइट (1952)’ थी।
चार्ली की दो और महत्वपूर्ण फ़िल्म जो मुझे सबसे ज्यादा गंभीर लगती है एक ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ और ‘मोंसिओर वरडॉक्स’ इन दोनों फिल्मों में चार्ली की पूर्व में बने स्वरूप को तोड़ देती है इनमें चार्ली हास्य कलाकार नहीं बल्कि एक सजग और गंभीर व्यक्ति के रूप में स्थापित हैं । यहाँ चार्ली के प्रसंशक जो चार्ली से सिर्फ मनोरंजन किरदार की उम्मीद करतेथे वे नाराज हुये लेकिन चार्ली ने यह दोनों फ़िल्म अपने स्व निर्णय से बनाया । जो आज भी सिनेमा में गंभीर विषयों को बताती है । चार्ली के लिए हिटलर के किरदार निभाना जो ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ फ़िल्म में थी वह आसान नहीं था लेकिन विश्व की स्थितियों को ध्यान में रखते हुये चार्ली ने यह फ़िल्म बनाई जो अब तक इस विषय पर बनी सबसे बेहतरीन फ़िल्म है । इसी तरह मोंसिओर वरडॉक्स’ फ़िल्म चार्ली बिल्कुल भिन्न तरह की फ़िल्म है जो ब्रेख्त के अलगाववादी अभिनय पर आधारित है । इस फ़िल्म में चार्ली का बहुत ही गंभीर व्यक्ति का किरदार है जो अपने घर को चलाने के लिए कई पैसे वाली महिलाओं से विवाह करते हैं और अपनी गृहस्थी का वहन करते है इस फ़िल्म को भी हालीवुड ने खूब पसंद नहीं किया लेकिन चार्ली स्वयं यह बात कहते हैं कि यह फ़िल्म उन्हे सर्वाधिक पसंद है जिसमें वे किसी का मनोरंजन नहीं करती बल्कि एक साधारण इंसान की तरह रहते हैं और यह फ़िल्म ब्रेख्त के भावनिरपेक्षवादी शैली से प्रभावित है ।
1972 में चैपलिन की 1952 की फिल्म ‘लाइमलाइट’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए ऑस्कर जीता। जिसमें क्लेयर ब्लूम सह अभिनेत्री थी। चैपलिन को 1929 में सर्कस के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक भी नामित किया गया था, सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ मूल पटकथा (हालांकि अकादमी ने अपने सरकारी रिकॉर्ड में इन नामांकन की सूची नहीं रखा क्योंकि अंतिम मतदान में प्रतियोगी के साथ शामिल होने के बावजूद, चैपलिन ने एक विशेष पुरस्कार प्राप्त किया था, 1940 में द ग्रेट डिक्टेटर के लिए सर्वश्रेष्ठ मूल पटकथा और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और दोबारा 1948 में मोंसिओर वरडॉक्स के लिए सर्वश्रेष्ठ मूल पटकथा के लिए पुरस्कार मिला। सिटी लाइट्स और मौडर्न टाइम्स, जो की कई स्तरों पर फिल्मों की दो सर्वश्रेष्ट फिल्म मानी गई, उन्हें एक भी अकादमी पुरस्कार के लिए नामजद नहीं किया गया था। इसके पीछे अकादमी और अमेरिकी साम्राज्य की विरोधी राजनीति थी। लेकिन कोई भी पुरस्कार चार्ली के काम क्या आकेगी उनकी फिल्में मील का पत्थर साबित हुई और आज भी जब क्लासिक सिनेमा की बात होगी तो बिना चार्ली के अधूरा रहेगा । क्योंकि सिर्फ तकनीक के आने से फिल्में नहीं बनी बल्कि कला और विचार से फिल्में बनती हैं चार्ली स्वयं को शांति का दूत भी कहते थे जिसका प्रभाव हमें उनकी फिल्मों में दिखता है । द नेशन ने लिखा “चैपलिन एक ऐसे कलाकार हैं ,जिनकी उज्ज्वल प्रतिभा से उस देश का नाम दशकों तक ऊंचा रहा है जिसे उन्होने अपनाया था और जिनकी प्रतिभा ने विश्व को आनंदित किया है ।” चार्ली चैप्लिन विश्व सिनेमा के साथ-साथ विश्व मानवता को मानवीय होने का अनूठा संदेश का नाम है। सिनेमा के इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज रहेगा और भावी सिनेमा प्रेमियों सिनेमा निर्माणकर्ताओं का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा ।