महाकाल रात्रि विषेश
प्रेम का पहला अक्षर तुम हो
मेरे प्रेम का अंत भी तुम हो
और कहूँ क्या इससे ज़्यादा
मुझसे ज्यादा मुझमें तुम हो।
निश दिन तुमको ही निहारूँ
तुम पर ही तन-मन मैं हारूँ
तुम देवों के देव महादेव
विष तुम्हारा हृदय में उतारूँ।
प्रेम-अमृत अधरों पर सजा लो
भष्म बना मुझे खुद मे मिला लो
निर्मल शीतल जल हो जाओ
संताप मेरे शीषगंगा में समा लो।
नारी पुरूष का भेद तजो तुम
अर्धनारीश्वर बन के दिखाओ
अपने समक्ष मुझे बिठा लो
मेरे अंतर्मन में समाओ।
शक्ति शिव है, शिव ही शक्ति
प्रेम भी शिव है, शिव है भक्ति
अपनी शक्ति मुझको बना लो
तुम मेरे शिव बन जाओ।
ओम् नमः शिवाय: