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भारतीय कवियों में भारतीय आख्यान की झलक रहती है : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल

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वर्धा, 21 मई 2021: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा है कि भारतीय कवियों में भारतीय आख्यान की झलक रहती है. सभी एक परम्परा से जुडे हुए हैं. सुमित्रानंदन पंत की कविता में प्राकृत प्रकृति है, प्रकृति सहचरी है.
प्रो. शुक्ल 20 मई (गुरुवार) को विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज द्वारा यशस्वी कवि सुमित्रा नंदन पंत की 122 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे थे.
संगोष्ठी में पंत जी की कविताओं के पाठ एवं वक्तव्य के माध्यम से उनके रचना संसार से नई पीढी को अवगत कराने का कार्य किया गया.
कुलपति प्रो. शुक्ल ने सुमित्रा नंदन पंत को भारतीय काव्य परम्परा के अंतर्गत समझने के प्रयास पर बल दिया. उन्होंने अभिनव गुप्त की परम्परा का उदाहरण देकर छंद के माध्यम पंत जी की कविताओं में स्वर ध्वनियों की मर्यादा पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि कविता की चरम निष्पत्ति शांत रस की है, जो पंत की रचनाओं में अपने पूरे वैभव के साथ प्रस्तुत है. पंत नये भारत के नयी कविता की निर्मिति के कवि हैं. कुलपति प्रो. शुक्ल ने ‘स्वर्ण किरन’ से कविता का पाठ भी किया.
साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अवधेश कुमार ने प्रस्तावना में कहा कि सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के कवि है और उनकी रचनाओं में छायावाद की सभी विशेषतायें पायी जाती हैं. उनका महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘पल्लव’ छायावाद का प्राण है.
प्रति कुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने पंत के रचना कर्म पर आलोचनात्मक दृष्टि डालते हुए कहा कि पंत जी आधुनिकता की पश्चिमी अवधारणा के अनुसार आधुनिकता के समर्थक नहीं रहे. उनकी आधुनिकता में प्रकृति से प्रेम है. पंत जी के ऊपर अरविंद दर्शन का भी प्रभाव रहा है. प्रो. शुक्ल ने ‘शिशु’ और ‘द्रुत झरो’ कविता का पाठ भी किया.
साहित्य विद्यापीठ के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने पंत की कविताओं के साथ जन सामान्य के जुडाव की बात करते हुए बताया कि पंत की कविताओं से लोगों का बचपन में ही परिचय हो जाता है. खडी बोली के विकास में पंत जी का बहुत बडा योगदान है. उन्होंने छायावाद में अपनी कविता में लाक्षणिक साहस दिखलाया है. पंत जी की चित्रमय भाषा इसका बडा प्रमाण है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने छायावाद के कवियों में सबसे महत्वपूर्ण कवि के रूप में पंत जी की प्रतिष्ठा की है. उनकी रचनाओं का आधार हाशिये की दुनिया है. उन्होंने पंत जी की ‘सुख दुख’ और ‘जीना अपने ही में’
कविता का पाठ किया.
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रियंका मिश्र ने कोविड काल जैसे कठिन समय में सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘काले बादल’ को आज के समय की प्रतिनिधि कविता कहा. उन्होंने बताया कि पंत जी की ‘काले बादल’ कविता जीवन के प्रति मनुष्य के आशावादी दृष्टिकोण पर बात करती हैं. मनुष्य के जीवन में समस्यायें हमेशा नहीं रहती जैसे कि काले बादल हमेशा नहीं रहते.
कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ. वागीश राज शुक्ल ने मंगलाचरण के माध्यम से वाग्देवी का स्तवन किया और कवि सुमित्रानंदन पंत जी की कविता का सस्वर पाठ भी किया. क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज के अकादमिक निदेशक प्रो. अखिलेश दुबे ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया और अपने पुरखों को लगातार स्मरण करने की जरूरत पर बल दिया.
कार्यक्रम का संचालन डॉ. ऋचा द्विवेदी ने किया तथा प्रो. अखिलेश दुबे ने आभार ज्ञापित किया. इस अवसर पर प्रो. प्रीति सागर, डॉ. अवंतिका शुक्ला, डॉ. आशा मिश्रा, डॉ. रामानुज अस्थाना, डॉ. अमित राय, डॉ. अमरेंद्र शर्मा सहित अनेक शिक्षक, गैर शैक्षणिक कर्मी, शोधार्थ एवं विद्यार्थी आॅनलाइन उपस्थित थे.