हिंदी विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी
‘कानून, जेंडर न्याय एवं परंपरा के संबंध का पुनर्मूल्यांकन’ विषय पर वक्ताओं ने रखे विचार
वर्धा, दि. 10 मार्च 2021 :
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के स्त्री अध्ययन विभाग द्वारा मंगलवार, 09 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में ‘कानून, जेंडर न्याय एवं परंपरा के संबंध का पुनर्मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी में अध्यक्षीय उदबोधन देते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि 8 मार्च 1857 को फेक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं ने आंदोलन किया था, एक धरना दिया था जिसमें समानता, समान मताधिकार और समान मजदूरी के प्रश्न थे। इसी आंदोलन का परिणाम है कि विधि की व्यवस्था के अंतर्गत 8 मार्च 1975 से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा। आज स्त्री को वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने की एक होड़ सी चल रही है। उन्होंने कहा कि महिला अत्याचारों को लेकर भारत में समाज की प्रतिक्रिया जबरदस्त है। परंपरा एक निरंतरता का नाम है और उस निरंतरता का विकास हमेशा परिष्कार के साथ होता है। उन्होंने कहा कि 1874 का अधिनियम 1975 में समीक्षित हुआ और उसके आधार पर कानून बनने में 25 वर्ष से अधिक का समय लग गया। संवेदना जितनी ताकतवर होगी, स्त्री को उसकी वास्तविक स्थितियां प्राप्त होंगी।उन्होंने कहा कि अपने समाज के यथार्थ को जानना ही वस्तुत: पुनर्मूल्यांकन होगा। और यह स्वतंत्रता, समानता और बंधुता का आदर्श विचार होगा।
संगोष्ठी की मुख्य अतिथि सॉंची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा ए. गुप्ता ने कहा कि पुरातन भारत में न्याय व्यवस्था थी और हमारे ग्रंथों में भी इसका उल्लेख किया गया है। न्याय व्यवस्था का संस्कृति के साथ जुड़ाव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज आधुनिकता के नाम पर पहचान छीन रहे है । हमें समाज में करुणा का भाव जगाकर सामूहिक दायित्व निभाना चाहिए।
महिला शोध अध्ययन केंद्र, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, मुंबई की सहायक प्राध्यापक वत्सला शुक्ला ने शहरी प्रशासन में नागरिक सहभागिता कानून की बात रखते हुए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करने की आवश्यकता प्रतिपादित की। उन्होंने कहा कि निर्णय प्रक्रिया में लोगों की सहभागिता बढ़ानी चाहिए और प्रशासन को जबावदेही और पारदर्शी बनाना चाहिए।
एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, मुंबई की कुलपति प्रो. शशिकला वंजारी ने कहा कि कानून निर्माण में महिलाओं की हिस्सेदारी जरूरी है। उन्होंने कानून महिलाओं तक और महिलाओं को कानून तक ले जाने की लिए जागरूकता की आवश्यकता जतायी।
टाटा सामाजिक विज्ञान संस्था, मुंबई की सेवानिवृत्त आचार्य प्रो. विभूति पटेल ने स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि देश की धरोहर और ऐतिहासिक विरासत को संभालते हुए अनेक महिलाओं ने भारतीय परंपरा को जीवन में ढाल दिया है। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में संविधान के योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने महिलाओं को लेकर बने विभिन्न कानूनों पर विस्तार से चर्चा करते हुए समानता और न्याय का वातावरण तैयार करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि 14 लाख महिलाएं विभिन्न स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं में बहादुरी तथा तालमेल के साथ काम कर रही हैं।
कार्यक्रम का स्वागत वक्तव्य संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी ने दिया। स्त्री अध्ययन विभाग की अध्यक्ष तथा संगोष्ठी की समन्वयक डॉ. सुप्रिया पाठक ने संगोष्ठी प्रस्ताव प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन स्त्री अध्ययन विभाग की सह-आचार्य डॉ. अवंतिका शुक्ला ने किया तथा आभार स्त्री अध्ययन विभाग के सहायक-आचार्य शरद जायसवाल ने माना।